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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...117 को शय्या, उपधि, आहार आदि देने वाला, दिलवाने वाला, गुरु आदि द्वारा दी गयी वस्तु या कही गयी वार्ता निर्दिष्ट साधुओं तक पहुँचाने वाला तथा उनके द्वारा निर्दिष्ट अन्य कार्यों को भी करने वाला मुनि उपग्रहकुशल कहलाता है।
7. अक्षत आचार - अशन, पान, शय्या और उपधि सम्बन्धी आधाकर्म, औद्देशिक, शंकित, स्थापित आदि दोषों का परिहार करने वाला तथा परिपूर्ण आचार का पालन करने वाला अक्षताचारी कहलाता है। ___8. अभिन्नाचार - जाति आदि बताकर जीविका नहीं चलाने वाला अभिन्नाचारी कहलाता है। ___9. अशबलाचार - अभ्याहृत आदि दोषों का परिहार करने वाला अथवा शबल दोषों से रहित आचरण करने वाला अशबलाचारी कहलाता है।
10. असंक्लिष्टाचार - इहलोक-परलोक सम्बन्धी सुखों की कामना न करने वाला अथवा क्रोधादि क्लिष्ट परिणामों से रहित भिक्षु असंक्लिष्टाचारी कहलाता है।
11. बहुश्रुत-बहुआगमज्ञ - आचार्य मधुकरमुनि के मन्तव्यानुसार 1. गम्भीरता, विचक्षणता एवं बुद्धिमत्ता आदि गुणों से युक्त 2. जिनमत की चर्चा में निपुण अथवा मुख्य सिद्धान्तों का ज्ञाता 3. नानाविध सूत्रों का अभ्यासी 4. छेदसूत्रों में पारंगत 5. आचार एवं प्रायश्चित्त विधानों में कुशल इत्यादि गुणों से युक्त मुनि बहुश्रुत व बहुआगमज्ञ कहलाता है।36
आचार प्रकल्प - समवायांग के टीकाकार ने आचार का अर्थ - आचारांगसूत्र और प्रकल्प का अर्थ - उसका अध्ययन विशेष किया है। इसका अपरनाम 'निशीथसूत्र' है। इस प्रकार दोनों सूत्र मिलकर 'आचारप्रकल्पसूत्र' कहलाता है।
आचार-प्रकल्प शब्द के वैकल्पिक अर्थ निम्न हैं
1. आचार और प्रायश्चित्तों का विधान करने वाला सूत्र अथवा निशीथ अध्ययनयुक्त-आचारांगसूत्र।
2. आचार विधानों के प्रायश्चित्त का प्ररूपकसूत्र- निशीथसूत्र।
3. आचार विधानों के बाद तप सम्बन्धी प्रायश्चित्तों को कहने वाला अध्ययन- निशीथ अध्ययन।
4. आचारांग से पृथक् किया गया खण्ड या विभाग रूप सूत्र निशीथसूत्र।