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________________ 116...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समय पर प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन एवं स्वाध्याय करने वाला, यथोचित तप करने वाला, ज्ञान आदि की वृद्धि एवं शुद्धि करने वाला, गुरु का बहुमान करने वाला भिक्षु आचारकुशल कहा जाता है। 2. संयमकुशल - त्रस एवं स्थावर जीवों की भलीभांति रक्षा करने वाला, गमनागमन आदि की प्रत्येक प्रवृत्ति अच्छी तरह देखकर करने वाला, प्रतिस्थापना समिति के नियमों का पूर्ण पालन करने वाला, सतरह प्रकार के संयम का पालन करने में निपुण अथवा एषणा, शय्या, आसन, उपधि, आहार आदि में प्रशस्त योग रखने वाला, अप्रशस्त योगों का परिहार करने वाला, इन्द्रियों एवं कषायों का निग्रह करने वाला, हिंसा आदि आस्रवों का निरोध करने वाला, आर्त्त-रौद्र ध्यान का त्याग कर धर्म-शुक्ल ध्यान में लीन रहने वाला, आत्मा के शुद्ध स्वभाव को प्रकट करने वाला मुनि संयमकुशल कहलाता है। 3. प्रवचनकुशल - जो जिनवचनों का ज्ञाता एवं कुशल उपदेष्टा हो वह प्रवचनकुशल कहलाता है। जैसे- सूत्र के अनुसार उसका अर्थ एवं परमार्थ प्रकट करने वाला, प्रमाण-नय-निक्षेपों द्वारा पदार्थों के स्वरूप को समझाने वाला, श्रुत एवं अर्थ का सम्यक् निर्णय करने वाला, श्रुत अध्ययन से अपना हित करने वाला, अन्य को हितावह उपदेश करने वाला एवं जिनवाणी के विरुद्ध बोलने वालों का निग्रह करने में समर्थ मुनि प्रवचनकुशल कहा जाता है। ___ 4. प्रज्ञप्तिकुशल - लौकिकशास्त्र, वेद, पुराण एवं जैन-सिद्धान्तों का सम्यक् निश्चय करने वाला, धर्मकथा, अर्थकथा आदि का सम्यक् ज्ञाता, परवादियों के कुतर्क का सम्यक समाधान करके उनसे कुदर्शन का त्याग कराने में समर्थ एवं स्व-सिद्धान्तों को समझाने में कुशल भिक्षु प्रज्ञप्तिकुशल कहलाता है। 5. संग्रहकुशल - द्रव्यत: उपधि एवं शिष्य आदि का और भावत: श्रुत एवं गुणों का संग्रह करने वाला, ग्लान वृद्ध आदि की अनुकम्पा पूर्वक वैयावृत्य करने वाला, सामाचारी भंग करने वाले साधुओं को अनुशासन पूर्वक रोकने वाला, गण के अन्तरंग कार्यों को करने वाला, यथावश्यक उपधि आदि की पूर्ति करने वाला, निःस्वार्थ सहयोग करने वाला एवं सहवर्ती मुनियों को रखने में कुशल मुनि संग्रहकुशल कहलाता है। 6. उपग्रहकुशल - बाल, वृद्ध, रोगी, तपस्वी, असमर्थ आदि मुनियों
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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