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________________ उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...109 दूसरी परिगणना के अनुसार पच्चीस गुण इस प्रकार हैं – (1-12) बारह अंगों के वेत्ता (13) करणगुण सम्पन्न (14) चरणगुण सम्पन्न (15-22) आठ प्रकार के प्रभावक गुणों से युक्त (23-25) मन, वचन और काय योग को वश में करने वाले उपाध्याय कहलाते हैं।24। सम्बोध प्रकरण में उपाध्याय के गुणों की पच्चीस-पच्चीसी का भी वर्णन प्राप्त होता है। उपाध्याय यशोविजयजी ने भी नवपदपूजा में इन्हीं गुणों की चर्चा करते हुए लिखा है कि "घरे पंचने वर्ग वर्गित गुणौघा" अर्थात उपाध्याय पांच वर्ग से वर्गित गुणों को धारण करते हैं जैसे - 5x5 = 25 इस प्रकार पचीस-पच्चीसी यानी 25x25 = 625 गुणों को धारण करने वाले होते हैं। इसका सुस्पष्ट वर्णन इस प्रकार है25_ ___1.) 11 अंग एवं 14 पूर्व का अध्ययन-अध्यापन करने-करवाने वाले होने से (11+14 = 25) गुण युक्त हैं। 2.) 11 अंग, 12 उपांग, 1 चरणसत्तरी एवं 1 करणसत्तरी गुण को धारण करने-करवाने वाले होने से (11+12+1+1 = 25) गुण युक्त हैं। 3.) ज्ञान सम्बन्धी 14 प्रकार की आशातना न करने वाले, न करवाने वाले तथा स्वर्ण के 11 गुण को धारण करने वाले होने से (14+11 = 25) गुण युक्त हैं। 4.) 13 क्रिया स्थानों का त्याग करने वाले, 7 द्रव्यों के ज्ञाता एवं 6 षड्जीवनिकायों की रक्षा करने वाले होने से (13+7+6 = 25) गुण युक्त हैं। 5.) 14 गुणस्थान एवं 11 उपासक प्रतिमा की प्ररूपणा करने वाले होने से (14+11 = 25) गुण धारक हैं। 6.) 5 महाव्रत की 25 भावनाओं को धारण करने वाले होने से (5 x 5 = 25) गुण युक्त हैं। 7.) 25 कन्दर्पादि अशुभ भावनाओं का त्याग करने वाले होने से (14 + 11 = 25) गुण युक्त हैं। 8.) प्रज्ञापिनी भाषा (विनयवान् शिष्य को उपदेश देने में उपयोगी भाषा) द्वारा पूजा के 8 एवं 17 भेदों के उपदेष्टा होने से (8+17 = 25) गुण धारक हैं। 9.) 4 प्रकार की प्रतिपत्ति एवं पूजा के 21 भेदों के ज्ञाता होने से (4+21 = 25) गुण वाले हैं।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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