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108...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उपाध्याय के अन्य नाम
उपाध्याय को अभिषेक, प्रतीच्छक, वृषभ, बहुश्रुत, आगमवृद्ध आदि भी कहा जाता है।
बृहत्कल्पभाष्य में उपाध्याय को अभिषेक कहा गया है। 16 यहाँ अभिषेक का स्वरूप बताते हुए निर्दिष्ट किया है कि अभिषेक नियमतः श्रुत निष्पन्न होता है, अन्यथा उसमें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने की योग्यता ही नहीं होती । 17 उपाध्याय गच्छान्तर से उपसम्पदा हेतु आये साधुओं को वाचनादान करते हैं अतः प्रतीच्छक कहलाते हैं। 18
उपाध्याय वृषभ के समान शक्ति सम्पन्न होने के कारण वृषभ कहलाते हैं।19
व्यवहारसूत्र के अनुसार जो अंगबाह्य, अंगप्रविष्ट आदि श्रुतागमों के ज्ञाता एवं अनेकों साधकों की चारित्रशुद्धि करते हैं वे बहुश्रुत कहलाते हैं | 20
स्थानांगसूत्र में कहा है कि जिसका सूत्र और अर्थ रूप से प्रचुर श्रुत पर अधिकार हो अथवा जो जघन्यतः नौवें पूर्व की तृतीय वस्तु का और उत्कृष्टतः दश पूर्वों का ज्ञाता हो, वह बहुश्रुत है अथवा जो आचारांग आदि कालोचित सूत्रों का ज्ञाता हो, वह बहुश्रुती कहलाता है। 21
बृहत्कल्पसूत्र में बहुश्रुत की तीन कोटियां प्रतिपादित की गयी हैं - 22 1. जघन्य बहुश्रुत जो आचार प्रकल्प एवं निशीथ का ज्ञाता हो । 2. मध्यम बहुश्रुत जो बृहत्कल्प एवं व्यवहारसूत्र का ज्ञाता हो । 3. उत्कृष्ट बहुश्रुत - नौवें या दसवें पूर्व तक का धारक हो । उपर्युक्त भेदों में दूसरे-तीसरे प्रकार की तुलना उपाध्याय के साथ की जा सकती है।
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इस प्रकार उपाध्याय के सभी नाम सार्थक एवं अन्वर्थक हैं। उपाध्याय के गुण
जैन आम्नाय में उपाध्याय के पच्चीस गुण माने गये हैं। उन गुणों की गणना मुख्यतया दो प्रकार से प्राप्त होती है। प्रथम गणना के अनुसार पच्चीस गुण इस प्रकार हैं - ग्यारह अंग, बारह उपांग, चरणसत्तरी - नियमित रूप से जिनका आचरण किया जाए ऐसे महाव्रत आदि अनुष्ठान और करणसत्तरीविशेष प्रयोजन से जिनका आचरण किया जाए ऐसे प्रतिलेखना आदि अनुष्ठान । इन गुणों का ज्ञाता एवं पालन कर्त्ता उपाध्याय कहलाता है। 23