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________________ गणावच्छेदक पदस्थापना विधि का प्राचीन स्वरूप...79 "ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो आयरियाणं ॐ नमो उवज्झायाणं ॐ नमो लोए सव्व साहूणं, ॐ नमो अरिहओ भगवओ महइ महावीर वद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरे-वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जए विजए जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा।" इसके पश्चात गुरु शिष्य का नया नामकरण करें। तदनन्तर कनिष्ठ साधु एवं साध्वी आदि चतुर्विध संघ उन्हें वन्दन करें। तदनन्तर गुरु नूतन गणावच्छेदक को गच्छानुरूप अनुशिक्षण दें। तुलनात्मक अध्ययन गणावच्छेदक पदस्थापना-विधि का तुलनात्मक पक्ष प्रस्तुत करना कुछ कठिन है। कारण कि गणावच्छेदक-विधि केवल सामाचारीप्रकरण में उल्लिखित है। यद्यपि इस पद-विधि की सामान्य विशेषताएँ निम्न है 1. गणावच्छेदक को आसन एवं अक्षमुष्टि नहीं दी जाती है तथा नन्दीपाठ भी नहीं सुनाया जाता है। सूरिमन्त्र के स्थान पर वर्धमानविद्या मन्त्र सुनाते हैं, शेष विधि प्राचीनसामाचारी में वर्णित आचार्यपदस्थापना के समान सम्पन्न की जाती है। 2. गणावच्छेदक को गणानुज्ञा के समान दिशा आदि अर्थात गुरु से पृथक विचरण, कनिष्ठ मुनियों के आचारशुद्धि का संरक्षण एवं संघीय दायित्व आदि की अनुमति दी जाती है। 3. गणावच्छेदक पद की अनुज्ञा के दिन शिष्य का नया नामकरण करते हैं अथवा नाम के आगे या पीछे परम्परागत सामाचारी के अनुसार विजय, यश, सागर आदि अतिरिक्त शब्द जोड़ देते हैं। __4. गणावच्छेदक द्वारा पदोत्सव के दिन कौनसा तप किया जाता है इसका स्पष्ट उल्लेख तो अप्राप्त है। तदुपरान्त सामाचारीप्रकरण के अस्पष्ट संकेतानुसार आयंबिल तप किया जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो जैन-परम्परा की मूल शाखाओं एवं उपशाखाओं में कहीं भी यह पद प्रचलित नहीं है अत: गणावच्छेदक स्थापना विधि विच्छिन्न सी हो गयी है। वैदिक ग्रन्थों में प्रस्तुत पद-सम्बन्धी कोई सामग्री प्राप्त नहीं हुई है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इस विषयक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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