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________________ अध्याय-5 गणावच्छेदक पदस्थापना विधि का प्राचीन स्वरूप गणावच्छेदक श्रमण परम्परा का महत्त्वपूर्ण पद है। श्रमण-संघ का सव्यवस्थित संचालन करने के उद्देश्य से इस पद की आवश्यकता स्वीकारी गयी है तथा विशाल गच्छों में गणावच्छेदक पदस्थ का होना अनिवार्य है। पूर्वकाल में संघीय अनेकों कार्य गणावच्छेदक द्वारा निष्पादित किये जाते थे। जैन-साहित्य में गणावच्छेदक के लिए ‘गच्छ-वच्छ' शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अभिप्राय यह है कि गणावच्छेदक का गच्छ के प्रति अटूट वात्सल्य होता है। वे गण अभिवर्द्धन के लिए विशेष प्रयत्नशील रहते हैं। गणावच्छेदक मुनि संघ की प्रत्येक अपेक्षाओं को पूर्ण करने में सदैव तत्पर और उद्यमशील होते हैं। इनके द्वारा संघ की आन्तरिक व्यवस्थाओं का दायित्व भी पूर्ण किया जाता है। गणावच्छेदक शब्द का अर्थ एवं परिभाषाएँ गण + आवच्छेदक इन दो पदों के संयोग से गणावच्छेदक शब्द निर्मित है। ‘गणावच्छेइय' प्राकृत शब्द का संस्कृत शुद्ध रूप गणावच्छेदक है। गण का अर्थ है - समूह, समुदाय, गच्छ, समान आचार-व्यवहार वाले साधुओं का समूह आदि। आवच्छेदक का अर्थ है - समग्र रूप से वात्सल्य रखने वाला अर्थात साधु गण के कार्य की चिन्ता करने वाला साधु गणावच्छेदक कहलाता है। • स्थानांगटीका में गणावच्छेदक का स्वरूप रूपायित करते हुए कहा गया है कि जो संघ को सहारा देता है, उसे सुदृढ़ बनाने हेतु प्रयत्नशील रहता है तथा मुनि संघ की संयम यात्रा के निर्वहनार्थ एवं तद्हेतु आवश्यक उपकरण के अन्वेषणार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान में विचरण करता है वह गणावच्छेदक कहलाता है।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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