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________________ प्रवर्तक पदस्थापना विधि का मार्मिक स्वरूप...59 इसके पश्चात गुरु शिष्य का नया नामकरण करें। तदनन्तर कनिष्ठ चतुर्विध संघ उन्हें वन्दन करें। फिर गुरु नूतन प्रवर्तक को गच्छानुरूप अनुशिक्षण दें। उस दिन गुरु-शिष्य दोनों आयंबिल का प्रत्याख्यान करें। तुलनात्मक विवेचन ___यदि प्रवर्तक पदस्थापना विधि का प्रामाणिक आधार ढूंढा जाए तो इसका उल्लेख एक मात्र प्राचीनसामाचारी में प्राप्त होता है। इस सामाचारी में रचयिता आदि किसी का भी सूचन न होने से इसका निश्चित काल कह पाना मुश्किल है। अनुमानत: यह ग्रन्थ विक्रम की 9वीं-10वीं शती का होना चाहिए। इससे पूर्ववर्ती एवं परवर्ती वैधानिक ग्रन्थों में लगभग विधि उल्लिखित नहीं है अत: इस ग्रन्थ के अनुसार तुलनात्मक विशिष्टताएँ इस प्रकार है - 1. प्राचीनसामाचारी के कर्ता ने प्रवर्तक पदस्थापना-विधि को उपाध्याय पदस्थापना के तुल्य सम्पन्न करने का दिशा निर्देश किया है और साथ ही उपाध्याय पदस्थापना से भिन्न किये जाने योग्य कृत्यों का भी सूचन किया है। उसमें मुख्य दो अन्तर बताए हैं • उपाध्याय को आसन दिया जाता है, प्रवर्तक को नहीं। • उपाध्याय एवं प्रवर्तक दोनों को वर्धमानविद्या मन्त्र सुनाया जाता है, परन्तु प्रवर्तक को यह मन्त्र कुछ शाब्दिक अन्तर के साथ सुनाया जाता है इस प्रकार इसमें दो तरह के मन्त्रों का उल्लेख है। 2. प्राचीनसामाचारी में वर्णित इस विधि के संकेतानुसार प्रवर्तक को दिशादि की अनुज्ञा दी जाती है। 3. प्रवर्तक को नन्दी पाठ नहीं सुनाया जाता है, किन्तु उपाध्याय की तरह नया नामकरण अवश्य करते हैं। 4. प्राचीनसामाचारी के निर्देशानुसार प्रवर्तक पदस्थापना के दिन गुरु एवं शिष्य दोनों आयंबिल का तप करते हैं। यहाँ गुरु द्वारा तपोनुष्ठान करने का जो निर्देश है, वह सामाचारीबद्ध प्रतीत होता है। यदि पूर्व कथित परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में इसका समाकलन करें तो प्राप्त जानकारी के अनुसार जैन धर्म की श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं में प्रवर्तक पद लुप्त हो गया है यद्यपि स्थानकवासी सम्प्रदाय में आज भी यह पद प्रवर्तित है। वर्तमान में एक मात्र इसी सम्प्रदाय में इस पद का महत्त्व देखा
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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