SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवर्तक पदस्थापना विधि का मार्मिक स्वरूप...55 करने वाला प्रवर्तक कहलाता है।2 • प्राकृत-हिन्दी कोश के अनुसार प्रवृत्ति करने वाला एवं प्रवृत्ति करवाने वाला प्रवर्तक कहा जाता है। • सामान्य परिभाषा के अनुसार गच्छबद्ध मुनियों को सम्प्रेरित करने के लक्ष्य से स्वयं सम्यक् प्रवृत्तियों में रत रहने वाला तथा नव दीक्षित मुनियों को तप, संयम आदि श्रेष्ठ कृत्यों में प्रवृत्त करने वाला प्रवर्तक कहलाता है। यह अन्वयार्थक परिभाषा है। • व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि जो तप, नियम और विनय रूप गण निधियों का नियोजन करते हैं, ज्ञान-दर्शन-चारित्र में सतत उपयोगवान हैं और शिष्यों के संग्रहण-उपग्रहण में कुशल होते हैं, वे प्रवर्तक हैं। दूसरी परिभाषा के अनुसार जो मुनि तप, संयम, नियम आदि योगों में योग्य मुनि का प्रवर्तन तथा असमर्थ का उससे निवर्त्तन करते हैं वे प्रवर्तक हैं। इस प्रकार प्रवर्तक गणचिन्ता में प्रवृत्त रहते हैं अतएव प्रवर्तक को गणचिन्तक भी कहा गया है। • धर्मसंग्रहकार के अनुसार प्रवर्तक जिस शिष्य को तप-संयमवैयावृत्य आदि के योग्य समझता है उसे प्रवर्तित करता है और अयोग्य को निवृत्त करता है इसलिए वह प्रवर्तक कहलाता है। . टीकाकारों के अभिप्राय से जो साधुओं को प्रशस्त व्यापार में प्रवृत्त करता है वह प्रवर्तक है अथवा जो मुनि धर्म में विषाद को प्राप्त है उसे प्रोत्साहित करने वाला प्रवर्तक कहलाता है। • एक अन्य परिभाषा के अनुसार जो गण (संघ) में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति मूलक सामाचारी का विधान करता है वह प्रवर्तक है।' सामान्यतया जो मुनि संयम-तप आदि के आचरण में धैर्यवान और सदनुष्ठान का सम्यक आराधक हो, वही प्रवर्तक बनने का सच्चा अधिकारी है और जिसमें तथाविध योग्यता का अभाव हो वह प्रवर्तक नहीं बन सकता है। प्रवर्तक मुनि की योग्यताएँ एवं मुहूर्त विचार ___प्रवर्तक पद पर स्थित होने वाला शिष्य किन गुणों से युक्त होना चाहिए? इस सम्बन्ध में स्वतन्त्र चर्चा कहीं भी दृष्टिगत नहीं होते है। अत:
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy