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________________ 48...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार जैन परम्परा में वाचनाचार्य एक महत्त्वपूर्ण पद है, परन्तु वर्तमान की अधिकतम परम्पराओं में यह पद विलुप्त हो रहा है। वाचनाएँ आज भी दी जाती है, किन्तु वह आचार्य, योग्य मुनि या ज्येष्ठ मुनि द्वारा ही सम्पन्न होती है। वाचनादान के सम्बन्ध में यह जान लेना भी जरूरी है कि वाचनाचार्य द्वारा सभी शिष्यों को समान रूप से वाचना दी जाती है, परन्तु वाचना लेने वाले सभी मुनि वाचना को तदनुरूप ग्रहण कर पाएं, यह आवश्यक नहीं है, क्योंकि ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के आधार पर आगम के सूत्रार्थ का बोध होता है। विशिष्ट क्षयोपशम वाला जीव वाचना को सर्वांश रूप से ग्रहण करता है जबकि मन्द क्षयोपशम वाला जीव पुरुषार्थ के बल पर न्यूनाधिक रूप से ग्रहण करता है तथा जो वाचना का सर्वांश या विशिष्ट प्रकार से अवधारण करता है वही वाचनाचार्य पद का योग्याधिकारी बनता है। सन्दर्भ - सूची 1. संस्कृत - हिन्दी कोश, पृ. 9174 2. वाचनं वाचना। अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 6 पृ. 1088 3. वाचना पाठनम्। उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पृ. 583 4. गुरुभ्यः श्रवणे अधिगमे। अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 6, पृ. 1088 5. गुरु समीपे सूत्राक्षराणां ग्रहणे । उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, अ. 29 की टीका 6. गुरुप्रदत्तेनैव सूत्रस्य परिपाटीरूपे । अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 6, पृ. 1088 7. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 759 8. तओ नो कप्पंति वाइत्तए, तं जहा - 1. अविणीए, 2. विगइपडिबद्धे, 3. अविओसविय पाहुडे । 9. तओ दुस्सन्नप्पा पण्णत्ता, तं जहा 1. दुट्टे, 2. मूढे, 3. वुग्गाहिए। - बृहत्कल्पसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 4/10 10. निशीथसूत्र, 19/20-21 11. निशीथभाष्य, 6240, 6243 की चूर्णि बृहत्कल्पसूत्र, 4/12
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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