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42...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सम्बन्ध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है।
2. आचारदिनकर में वाचना लेते-देते हुए संघट्टा ग्रहण एवं उन दिनों आयंबिल आदि तप करने का निषेध किया गया है, जबकि विधिमार्गप्रपा में तत्सम्बन्धी कोई निर्देश नहीं है।
3. आचारदिनकर में आगम सूत्रों का वाचना क्रम बतलाया गया है, परन्तु विधिमार्गप्रपा में इस विषयक कुछ भी नहीं कहा गया है।
4. विधिमार्गप्रपा में वाचना प्रारम्भ करने से पूर्व वाचना ग्रहण एवं आसन पर बैठने के आदेश लेने का उल्लेख है, किन्तु आचारदिनकर में इसका निर्देश नहीं है।84 शेष विधि दोनों में समान है।
यदि परम्परा की दृष्टि से आकलन किया जाए तो जैन धर्म की श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों धाराओं में यह विधि परम्परागत रूप से आज भी मौजूद है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में पूर्वनिर्दिष्ट विधि के साथ वाचना दी-ली जाती है। अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय में वाचना प्रारम्भ करने से पूर्व सामान्यतया गुरु वन्दन का विधान ही होता है। ___दिगम्बर साहित्य में इतना निर्देश है कि मुनियों को ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन बृहद् सिद्धभक्ति और बृहद् श्रुतभक्ति पूर्वक श्रुतस्कन्ध की वाचना (श्रुत के अवतरण का उपदेश) ग्रहण करनी चाहिए। उसके बाद श्रुतभक्ति और आचार्यभक्ति करके स्वाध्याय करना चाहिए और अन्त में श्रुतभक्ति पढ़कर स्वाध्याय को समाप्त करना चाहिए। समाप्ति पर शान्तिभक्ति भी करनी चाहिए।85
वैदिक या बौद्ध परम्परा में विशिष्ट ग्रन्थों का अध्ययन प्रारम्भ करने से पूर्व इष्ट का स्मरण एवं गुरु को प्रणाम करने के अतिरिक्त कोई विधि लगभग नहीं होती है।
___ वाचनाचार्य पदस्थापना-विधि के सम्बन्ध में तुलना की जाए तो यह विधि तिलकाचार्यसामाचारी, प्राचीनसामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर आदि ग्रन्थों में प्राप्त होती है। उनमें परस्पर रही हुई कुछ समरूपता एवं कुछ भिन्नताएँ निम्न प्रकार है - ___मुहूर्त सम्बन्धी - तिलकाचार्यसामाचारी86 एवं आचारदिनकर7 के अन्तर्गत इस पदस्थापना को शुभ मुहूर्त में गुरु-शिष्य के चन्द्रबल के अनुसार करने का निर्देश किया गया है जबकि प्राचीनसामाचारी88 एवं विधिमार्गप्रपा89 में