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32... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन आ जाए तो संसार समुद्र से निस्तरण भी हो सकता है।13 भोजन मंडली की आवश्यकता क्यों ?
मंडल शब्द अनेकार्थक है। इसका प्रयोग गोल, वृत्ताकार, समुदाय, समूह, संग्रह, टोली आदि अर्थों में होता है। यहाँ मंडली से तात्पर्य समुदाय, टोली आदि है। साधु-साध्वी के द्वारा अपने समुदाय के साथ बैठकर आहार आदि करना भोजन मंडली कहा जाता है।
यहाँ प्रश्न होता है कि जैन मुनि गृहस्थ की भाँति एक साथ भोजन नहीं करते, सभी के आहार पात्र अलग-अलग होते हैं फिर मंडली की आवश्यकता क्यों?
आगमकारों ने भोजन मंडली के निम्न आठ प्रयोजन बतलाये हैं।4
1. अतिग्लान- यदि रूग्ण मुनियों की सेवा अकेला साधु करे तो उसके सूत्र-अर्थ की हानि हो सकती है परन्तु मंडलीबद्ध होने पर ग्लान मुनि के कार्यों को बाँटा जा सकता है। इससे किसी एक साधु की सूत्र हानि भी नहीं होती और ग्लान की सेवा भी सम्यक प्रकार से हो जाती है।
2-3. बाल, वृद्ध- बाल एवं वृद्ध आहार लाने में असमर्थ होते हैं। यदि मंडली व्यवस्था हो तो अन्य साधु भी आहार आदि लाकर दे सकते हैं। इससे बाल-वृद्धादि मुनियों की सुखपूर्वक आराधना हो सकती है। ____4. शैक्षक- नवदीक्षित मुनि आहार की शुद्धाशुद्धि से अनभिज्ञ होता है किन्तु मंडली में होने से सहवर्ती साधु सहयोगी बन सकते हैं। ____5. प्राघूर्णक- विहार करके आए हुए मुनियों की सेवा के लिए मांडली आवश्यक है। मंडली व्यवस्था हो तो स्थिरवासी सभी मुनिजन आगत की परिचर्या कर सकते हैं।
_6. असमर्थ- राजपुत्र आदि कोमल देह वाले होने से कदाच भिक्षार्थ भ्रमण न कर सकें तो मंडलीबद्ध होने पर सहवर्ती साधु भी आहार आदि प्रदान कर सकते हैं। ___7. सर्व साधु सुश्रुषा- मंडली गत व्यवस्था में सर्व मुनियों को आहार आदि करवाने का लाभ प्राप्त होता है। ____ 8. अलब्धि- कदाचित किसी मुनि के प्रबल अन्तराय कर्म का उदय हो और उसे आहारादि की प्राप्ति न होती हो तो मांडलिक साधु मदद कर सकते हैं।