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भिक्षाचर्या की उपयोगिता एवं उसके रहस्य ... 31
नवदीक्षित मुनि दूसरे दिन अपने सांसारिक परिवार वालों के यहाँ अथवा ब्रह्मचर्य व्रत आदि का नियम लेने वालों के घर पर भिक्षार्थ जाते हैं। इस स्थिति में पूर्वोक्त नियम कैसे पल सकता है ?
इस सम्बन्ध में यह भी कहा जा सकता है कि वर्तमान परम्परा के अनुसार पहली बार भिक्षा के लिए गृहस्थ परिवार वालों के यहाँ जाने से सहज में आहार प्राप्त हो जाता है। दूसरा तथ्य यह है कि बड़ी दीक्षा से पूर्व तक नवदीक्षित स्वयं की आवश्यकता के अनुसार ही आहार लेता है, समुदाय के लिए तो अन्य साथ रहने वाले मुनि ही ग्रहण करते हैं।
संभवतः यह मुहूर्त्त आदि का विचार प्रथम बार सामुदायिक आहार के लिए जाने से पूर्व किया जाता होगा, जिससे वह वृद्ध आदि मुनियों की सेवा का लाभ प्राप्त कर सके।
भिक्षाटन से पूर्व उपयोग विधि किसलिए?
मुनि की दैनिक जीवन चर्या में उपयोग नाम की एक विधि होती है जिसके द्वारा सचित्त एवं अचित्त आहार आदि के विषय में गुर्वाज्ञा प्राप्त की जाती है। इस विधि का मुख्य प्रयोजन यह है कि भिक्षाटन करते समय कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए जिसके विषय में संशय हो और गुरु से पूछना असंभव हो तो भिक्षाचारी मुनि पूर्व गृहीत आज्ञा से विवेकानुसार कार्य कर सकता है। इस तरह उसके जीवन में मर्यादा बनी रहती है। भिक्षाचर्या सम्बन्धी आलोचना दो बार क्यों?
आलोचना आत्म शुद्धि का प्राण है। प्रथम आलोचना पाप शुद्धि निमित्त गुर्वादि के सम्मुख की जाती है तथा भिक्षा सम्बन्धी दूसरी आलोचना स्मृतिगत आलोचना के अतिरिक्त भी कुछ दोष अज्ञात या विस्मृत रह गये हों तो उनकी शुद्धि हेतु आत्मसाक्षी पूर्वक की जाती है । भिक्षा सम्बन्धित दोषों को पूर्णत: स्मृतिगत रखना अशक्य होने से ही दो बार आलोचना का निर्देश है। 12 आहार हेतु निमंत्रण क्यों दिया जाए?
ओघनियुक्तिकार के अनुसार जो भिक्षु स्वयं के द्वारा लायी गई भिक्षा का संविभाग करने हेतु साधर्मिक मुनियों को निमंत्रण देता है, वह स्वयं की चित्त शुद्धि करता है । चित्तशुद्धि से निर्जरा होती है, आत्मा शुद्ध बनती है। यदि सम्पूर्ण आहार दूसरों को अर्पण करके स्वयं में तप-त्याग का उत्कृष्ट रसायन