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भिक्षाचर्या की उपयोगिता एवं उसके रहस्य ...21
आचारांगसूत्र में वर्णन आता है कि साधु को रूखा-सूखा जैसा भी भोजन मिले, उसे सहर्ष खा लेना चाहिए, यह नहीं कि अच्छा-अच्छा खा लें और रूखा-सूखा त्यक्त कर दें। यदि ऐसा किया जाये तो उसके लिए निशीथसूत्र में दण्ड का विधान है। यह नियम भिक्षा शुद्धि के लिए परमावश्यक माना गया है। अन्यथा वह विशिष्ट भोजन की तलाश में इधर-उधर देर तक घूमता रहेगा, अधिक संग्रह करेगा और अच्छा-अच्छा खाकर निःसार द्रव्य फेंक देगा। इससे अहिंसा व्रत खण्डित होता है।
पूर्वाचार्य शय्यंभवसूरि ने यह भी निर्देश दिया है कि मुनि भिक्षा के लिए स्वादु भोजन देने वाले धनिक घरों की खोज में न रहें। मार्ग में चलते हुए जो भी घर आ जाए, वहाँ बिना किसी भेद-भाव के जायें और शास्त्र विधि के अनुसार खट्टा हो या मीठा किन्तु शरीर के अनुकूल भोजन ग्रहण करें। ___ज्ञानी पुरुषों ने सभी नियम विशिष्ट उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बनाये हैं जिससे भिक्षा में किसी प्रकार की दुर्बलता प्रवेश न कर पाये और भिक्षा का आदर्श भी कलंकित न हो सके।
बृहत्कल्पभाष्य में भिक्षार्थ जाने से पूर्व कायोत्सर्ग करने का विधान है। इस कायोत्सर्ग (ध्यान) में विचार किया जाता है कि आज मैंने आयंबिल आदि कौनसा व्रत ले रखा है और उसके लिए कितना और कैसा भोजन आवश्यक है? यह कायोत्सर्ग स्वयं के भूख की अन्तर्ध्वनि सनने के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि मर्यादित और आवश्यक भोजन ही लाया जाये।
गवेषणा पूर्वक आहार लाने के बाद जब तक गुरु चरणों में या अर्हत परमात्मा की साक्षी में गोचरचर्या की आलोचना न की जाए, तब तक लाया गया भोजन ग्रहण नहीं किया जा सकता। यह नियम गुरु के समक्ष गोचरचर्या की रिपोर्ट देने के लिए है।
यदि आहार लेते समय किसी तरह का दोष लग गया हो तो उससे मुक्त होने के लिए प्रायश्चित्त का नियम है।
वस्तुत: भिक्षावृत्ति भीख मांगना नहीं है, प्रत्युत भिक्षा महान् आदर्श है। यदि इस चर्या का सम्यक पालन किया जाये तो कौनसा घर कैसा है? उनका आचार-विचार किस कोटि का है? आदर्श संस्कृति का विकास हो रहा है या ह्रास? आदि प्रश्नों के समाधान भिक्षाटन द्वारा प्राप्त हो सकते हैं और भिक्षाचरी