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14... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
अभिग्रह की अपेक्षा उक्त चारों प्रकार के मुनि प्रशंसनीय हैं।26
आगमकारों ने शारीरिक सामर्थ्य एवं धृति बल आदि की अपेक्षा भिक्षाचारी मुनि की तुलना चतुर्विध पक्षियों से भी की है
1. निपतिता, न परिव्रजिता- कोई पक्षी अपने घोंसले से नीचे उतर सकता है, किन्तु शिशु होने से उड़ नहीं सकता। इसी तरह कोई मुनि भिक्षार्थ गमन तो करता है किन्तु रुग्ण आदि होने के कारण अधिक घूम नहीं सकता।
2. परिव्रजिता, न निपतिता- कोई पक्षी अपने घोंसले से उड़ सकता है, किन्तु भय प्रकृति वाला होने से नीचे नहीं उतरता। इसी तरह कोई मुनि भिक्षार्थ भ्रमण कर सकता है, किन्तु स्वाध्याय आदि में संलग्न रहने से भिक्षाटन नहीं कर सकता।
3. निपतिता भी, परिव्रजिता भी- कोई समर्थ पक्षी घोंसले से नीचे भी उतर सकता है और ऊपर भी उड़ सकता है। इसी तरह समर्थ मुनि भिक्षा के लिए निकलता भी है और घूमता भी है।
4. न निपतिता, न परिव्रजिता- पक्षी का बहुत छोटा बच्चा न घोंसले से नीचे उतर सकता है और न ऊपर उड़ सकता है। इसी तरह नवदीक्षित मुनि भिक्षा के लिए अकेले नहीं निकलते हैं और घूम भी नहीं सकते हैं। __इनमें तीसरा प्रकार उत्कृष्ट है। सामान्यतया सभी मुनियों को समर्थ होना चाहिए।27 आहार के प्रकार
मनुष्य का आहार चार प्रकार का होता है- 1. अशन - जो भूख मिटाता है वह अशन है जैसे-चावल, दाल आदि। 2. पान- जो दस प्रकार के प्राणों पर अनुग्रह करता है, उन्हें जीवन देता है वह पान या पेय है जैसे-जल, दूध, नीबू का पानी आदि। 3. खादिम - जिसे मुख विवर में स्वाद लेते हुए खाया जाता है वह खादिम है जैसे-फल, मेवा आदि। 4. स्वादिम - जो आस्वाद युक्त होता है और मुखवास के रूप में खाया जाता है वह स्वादिम है जैसे-लौंग, इलायची आदि।28
__दिगम्बर के मूलाचार एवं अनगार धर्मामृत में चतुर्विध आहार के भेदप्रभेदों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भोज्य पदार्थों का यह विभाजन पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से है, द्रव्यार्थिक नय के विचार से सभी आहार अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य रूप है।29