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भिक्षा विधि का स्वरूप एवं उसके प्रकार ...5 प्रकारान्तर से पिण्ड के छ: प्रकार भी वर्णित हैं।12 जैन मुनि की आहार विधि को समग्र रूप से प्रस्तुत करने वाला यह एक मात्र ग्रन्थ है अत: इसका नाम 'पिण्डनियुक्ति' है। भिक्षा प्राप्ति के प्रकार
जैन साहित्य में 'भिक्षाविधि' का विस्तृत विवेचन उपलब्ध होता है। उनमें भिक्षा प्राप्ति एवं भिक्षा ग्रहण के अनेक उपाय बताये गये हैं।
सर्वप्रथम आचारांग सूत्र में भिक्षा प्राप्त करने के सात प्रकार उल्लिखित हैं। इसका तात्पर्य है कि मुनि इन सात प्रकारों के अनुसार भिक्षा ग्रहण करें। इन्हें 'पिण्डैषणा' कहा गया है। पिण्डैषणा सम्बन्धी सात प्रकार
पिण्डैषणा (आहार ग्रहण) के सात प्रकार निम्न हैं1. संसृष्टा- खाद्य वस्तुओं से लिप्त हाथ या पात्र से भिक्षा लेना। 2. असंसृष्टा - अलिप्त हाथ या पात्र से भिक्षा लेना। 3. उद्धता- पकाने के पात्र से दूसरे पात्र में निकाला हुआ आहार लेना। 4. अल्पलेपा- अल्पलेप वाली अर्थात चना, चिवड़ा आदि रूखी वस्तु
लेना।
5. अवगृहीता- खाने के लिए थाली में परोसा हुआ आहार लेना।
6. प्रगृहीता- परोसने के लिए कड़छी या चम्मच से निकाला हुआ आहार लेना। ____7. उज्झितधर्मा- जो भोजन मन पसन्द का न होने से परित्यक्त किया गया हो उसे लेना।13
- इसी तरह पानी ग्रहण करने से सम्बन्धित भी सात प्रकार जानने चाहिए। इन्हें पानैषणा कहा गया है।14
इस प्रकार एषणा दो प्रकार की होती है- सात प्रकार से आहार ग्रहण करना पिण्डैषणा है और सात प्रकार से पानी ग्रहण करना पानैषणा है। अभिग्रह सम्बन्धी तीस प्रकार
औपपातिक सूत्र में अभिग्रहधारी मुनि की अपेक्षा से भिक्षा प्राप्त करने के निम्न तीस प्रकार निर्दिष्ट हैं।15