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________________ 254... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन यह अन्वेषण का विषय है कि ऐसा कैसे हुआ? इस संदर्भ में ये संभावना की जा सकती है कि संपादित निशीथ भाष्य एवं चूर्णि में वह प्रसंग छूट गया हो ___ अथवा ग्रंथकार ने उसे सरल समझकर छोड़ दिया हो। 21 (क) पिण्डनियुक्ति, 482-83 की टीका, पृ. 139 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1414-17 (ग) पिण्डविशुद्धि टीका, पृ. 65 22 (क) पिण्डनियुक्ति, 495-96 की टीका, पृ. 141-142 (ख) निशीथभाष्य, 4457-4458 की चूर्णि, पृ. 422 (ग) पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, पृ. 67 (घ) जीतकल्पभाष्य, 1439-42. 23 जीतकल्पभाष्य (1444) में प्रतिष्ठानपुर के स्थान पर पाटलिपुत्र का उल्लेख मिलता है। 24. (क) पिण्डनियुक्ति, 498 की टीका, पृ. 142 (ख) निशीथभाष्य, 4460 की चूर्णि, पृ. 423 (ग) जीतकल्पभाष्य, 1444-1445 (घ) पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, पृ. 67 25 निशीथचूर्णि (भा. 3 पृ. 423) एवं पिण्डविशुद्धिप्रकरण में पाटलिपुत्र नाम का उल्लेख है। पाटलिपुत्र का पुराना नाम कुसुमपुर था। 26. पिण्डविशुद्धिप्रकरण में आचार्य का नाम संभूतविजय है। 27. (क) पिण्डनियुक्ति 500, पिण्डनियुक्ति भाष्य 35-37 की टीका, पृ. 143 (ख) निशीथभाष्य, 4463-65 की चूर्णि, पृ. 423-424 (ग) जीतकल्पभाष्य, 1450-55 (घ) पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, पृ. 67-68 28. निशीथचूर्णि (भा. 3 पृ. 445) तथा जीतकल्पभाष्य (1460) में आभीर जनपद का उल्लेख मिलता है। 29. (क) पिण्डनियुक्ति, 503-505 की टीका, पृ. 144 (ख) निशीथभाष्य, 4470-72 की चूर्णि, पृ. 425 (ग) जीतकल्पभाष्य, 1460-66 (घ) पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, पृ. 68
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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