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आहार सम्बन्धी 47 दोषों की कथाएँ ...251 को अपनी ओर खींचा तो देखा कि वह मत्स्य और मांसपेशी से रहित है। मच्छीमार ने पुन: मांसपेशी लगाकर कांटे को सरोवर में फेंका। पुन: वह मत्स्य मांस खाकर पूंछ से कांटे को धकेलकर पलायन कर गया। इस प्रकार उसने तीन बार मांस खाया लेकिन मच्छीमार उसको पकड़ नहीं सका। ____ मांस समाप्त होने पर चिंता करते हुए मच्छीमार को मत्स्य ने कहा-'तुम इस प्रकार क्या चिन्तन कर रहे हो? तुम मेरी कथा सुनो, जिससे तुमको लज्जा का अनुभव होगा। मैं तीन बार बला का के मुख में जाकर भी उससे मुक्त हो गया। एक बार मैं बलाका के द्वारा पकड़ा गया तब उसने मुझे मुख में डालने के लिए ऊपर की ओर फेंका। मैंने सोचा कि यदि सीधा इसके मुख में गिर जाऊंगा तो मेरे प्राणों की रक्षा संभव नहीं है। इसलिए इसके मुख में तिरछा गिरूंगा। ऐसा सोचकर मैंने फुर्ती से वैसा ही किया। मैं उसके मुख से बाहर निकल गया। पुन: दूसरी बार भी उसके मुख में जाकर बाहर निकल गया। तीसरी बार जल में गिरने से दूर चला गया। तीन बार समुद्री तट पर भट्टी के रूप में चलती बाल में गिरा, लेकिन शीघ्र ही लहरों के साथ वापस समुद्र में चला गया। इसी प्रकार मच्छीमार द्वारा बिछे जाल में इक्कीस बार फंसने पर भी जब तक मात्स्यिक ने जाल का संकोच किया, उससे पहले मैं जाल से निकल गया। एक बार मात्स्यिक ने हृद के जल को बाहर निकालकर उसे खाली करके अनेक मत्स्यों के साथ मुझे पकड़ा। वह सभी मत्स्यों को एकत्र करके तीक्ष्ण लोहे की शलाका में उनको पिरो रहा था। तब मैं दक्षता से मास्त्यिक की दृष्टि बचाकर स्वयं ही उस लोहे के शलाका के मुख पर स्थित हो गया। जब वह मच्छीमार कर्दम लिप्त मत्स्यों को धोने के लिए सरोवर पर गया तब शीघ्र ही मैं जल में निमग्न हो गया। इस प्रकार मुझ शक्ति सम्पन्न को तुम कांटे से पकड़ना चाहते हो, यह तुम्हारी निर्लज्जता है।' इस कथा का निगमन करते हुए कथाकार कहते हैं कि एषणा के 42 दोषों से बचने पर भी हे जीव! यदि तुम ग्रासैषणा के दोषों में लिप्त होते हो तो यह तुम्हारी निर्लज्जता है।33
प्रस्तुत अध्याय में उक्त कथाओं के माध्यम से आहारचर्या के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तथ्यों को सोदाहरण समझाने का प्रयास किया है। यह कथाएं हमें 47 दोषों के यथार्थ स्वरूप से परिचित करवाते हुए वर्तमान जीवन शैली में मुनि आहार के प्रति बढ़ती हुई लापरवाही एवं उपेक्षाभाव को कम कर पाएं तो इस कृति की सार्थकता होगी।