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________________ 246... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 19. विद्या प्रयोग : भिक्षु-उपासक की कथा गंधसमृद्ध नगर में धनदेव नामक भिक्षु उपासक रहता था। साधुओं के घर आने पर वह उनको भिक्षा में कुछ नहीं देता था। एक बार कुछ तरुण साधु एक साथ एकत्रित होकर वार्तालाप करने लगे। एक युवक साधु ने कहा- 'यह धनदेव अत्यन्त कंजूस है, साधुओं को कुछ भी नहीं देता है। क्या कोई साधु ऐसा है, जो इससे घृत, गुड़ आदि का दान ले सके ?' उनमें से एक साधु बोला- ‘यदि तुम लोगों की इच्छा है तो मुझे विद्यापिंड की आज्ञा दो, मैं उससे दान दिलवाऊंगा।' साधु उसके घर गया। घर को अभिमंत्रित करके वह साधुओं से बोला-‘क्या दिलवाऊं ?' साधुओं ने कहा - 'घृत, गुड़ और वस्त्र आदि। ' धनदेव ने प्रचुर मात्रा में साधुओं को घृत, गुड़ आदि दिया। उसके बाद क्षुल्लक ने विद्या प्रतिसंहृत कर ली । भिक्षु उपासक धनदेव के ऊपर से मंत्र का प्रभाव समाप्त हो गया। वह स्वाभावस्थ हो गया। जब उसने घृत, गुड़ आदि को देखा तो उसे वे मात्रा में कम दिखाई दिए। उसने पूछा- 'मेरे घी, गुड़ आदि की चोरी किसने की?' इस प्रकार कहते हुए उसने विलाप करना प्रारंभ कर दिया। तब परिजनों ने उसे समझाते हुए कहा - 'तुमने स्वयं अपने हाथों से साधुओं को घी, गुड़ आदि का दान दिया है, फिर तुम इस प्रकार विलाप क्यों कर रहे हो ?' उनकी बात सुनकर वह मौन हो गया | 22 20. मंत्र प्रयोग : मुरुण्ड राजा एवं पादलिप्तसूरि कथानक प्रतिष्ठानपुर नगर±3 में मुरुण्ड नामक राजा राज्य करता था। वहाँ पादलिप्त आचार्य का प्रवास था। एक बार मुरुण्ड राजा के सिर में वेदना उत्पन्न हो गई। विद्या, मंत्र आदि के द्वारा भी कोई उसे शान्त नहीं कर सका। राजा ने पादलिप्त आचार्य को बुलाया, उनका स्वागत करते हुए राजा ने अकारण होने वाली शिरोवेदना के बारे में बताया। लोगों को ज्ञात न हो इस प्रकार मंत्र का ध्यान करते हुए वस्त्र के मध्य में अपनी दाहिनी जंघा के ऊपर दाहिने हाथ की प्रदेशिनी अंगुली को जैसे-जैसे घुमाया, वैसे-वैसे राजा की शिरोवेदना दूर होने लगी। धीरे-धीरे पूरे सिर का दर्द दूर हो गया। मुरुण्ड राजा आचार्य पादलिप्त का भक्त बन गया। उसने आचार्य को विपुल भोजन आदि का दान दिया | 24
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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