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244... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन युक्त तथा अधोगति की कारणभूत स्त्रियों के लिए मुक्तिपद के साधन संयम को छोड़ दिया। अभी भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ा है। मैं गुरु चरणों में जाकर पुन: चारित्र ग्रहण करूंगा और पाप-पंक का प्रक्षालन करूंगा।' यह सोचकर आषाढ़भूति अपने घर से निकलने लगा। विश्वकर्मा ने उसको देख लिया। आषाढ़भूति के चेहरे के हाव-भाव से उसने जान लिया कि यह संसार से विरक्त हो चुका है। उसने अपनी दोनों पुत्रियों को उठाकर उपालम्भ देते हुए कहा'तुम्हारी इस प्रकार की उन्मत्त चेष्टाओं को देखकर सकल निधान का कारण तुम्हारा पति तुमसे विरक्त हो गया है। यदि तुम उसे लौटा सको तो प्रयत्न करो, अन्यथा जीवन चलाने के लिए धन की याचना करो।'
दोनों पत्नियाँ वस्त्र पहनकर आषाढ़भूति के लिए दौड़ी और पैरों में गिर पड़ी। उन्होंने निवेदन करते हुए कहा- 'स्वामिन्! हमारे एक अपराध को क्षमा करके आप पुन: घर लौट आओ। विरक्त होकर इस प्रकार हमें मझधार में मत छोड़ो।' उनके द्वारा ऐसा कहने पर भी उसका मन विचलित नहीं हुआ। पत्नियों ने कहा-'यदि आप गृहस्थ जीवन नहीं जीना चाहते हैं तो हमें जीवन चलाने जितना धन दो, जिससे आपकी कृपा से हम अपना शेष जीवन भलीभांति बिता सकें।' अनुकम्पावश आषाढ़भूति ने उनके इस निवेदन को स्वीकार कर लिया
और पुन: घर आ गया। ___आषाढ़भूति ने भरत चक्रवर्ती के चरित्र को प्रकट करने वाले 'राष्ट्रपाल' नामक नाटक की तैयारी की। विश्वकर्मा ने राजा सिंहरथ को निवेदन किया कि आषाढ़भूति ने 'राष्ट्रपाल' नामक नाटक की रचना की है। आप उसका आयोजन करवाएँ। नाटक के मंचन हेतु उनको आभूषण पहने हुए 500 राजपुत्र चाहिए। राजा ने 500 राजपुत्रों को आज्ञा दे दी। आषाढ़भूति ने उनको सम्यक प्रकार से प्रशिक्षित किया। नाटक प्रारंभ हुआ। आषाढ़भूति ने भरत चक्रवर्ती का रोल प्रस्तुत किया और राजपुत्रों ने भी यथायोग्य अभिनय किया।
नाटक के दौरान आषाढ़भूति ने 500 राजकुमारों के साथ दीक्षा ग्रहण की। नाटक से संतुष्ट राजा ने तथा सभी लोगों ने यथाशक्ति हार, कुंडल आदि आभूषण प्रभूत मात्रा में फेंके। सब लोगों को धर्मलाभ देकर आषाढ़भूति 500 राजकुमारों के साथ राजकुल से बाहर जाने लगे। राजा ने उनको रोका। तब उन्होंने उत्तर दिया- 'क्या भरत चक्रवर्ती प्रव्रज्या लेकर वापिस संसार में लौटे