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238... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
करते हुए बोली- 'जानकारी के अभाव में मैने अपने पिता मुनि के साथ अपनी पुत्री को संदेश भेजा था।' इस कारण ग्रामवासी मुनि धनदत्त को धिक्कारने लगे। प्रवचन की भी अवहेलना होने लगी। 13
13. निमित्त दोष : ग्रामभोजक दृष्टांत
एक गाँव में नैमित्तिक साधु रहता था। उस गाँव का नायक अपनी पत्नी को छोड़कर दिग्यात्रा पर गया हुआ था । उस पत्नी को नैमित्तिक ने अपने निमित्त ज्ञान से आकृष्ट कर लिया। दूरस्थ ग्राम नायक ने सोचा- 'मैं प्रच्छन्न रूप से अकेला जाकर अपनी पत्नी की चेष्टाएँ देखूंगा कि वह दुःशीला है अथवा सुशीला ?' उस नैमित्तिक साधु से अपने पति के आगमन की बात जानकर उसने अपने परिजनों को सामने भेजा । ग्रामनायक ने परिजनों से पूछा- 'तुम लोगों को मेरे आगमन की बात कैसे ज्ञात हुई ?' उन्होंने कहा- 'तुम्हारी पत्नी ने यह बात बताई है।' उसने मन में चिन्तन किया कि मेरी पत्नी ने मेरे आगमन की बात कैसे जानी ?
साधु उस समय ग्राम भोजक के घर आ गया। उसने विश्वासपूर्वक पति के साथ हुए वार्तालाप, चेष्टा, स्वप्न तथा शरीर के मष, तिलक आदि के बारे में बताया। इसी बीच ग्राम भोजक अपने घर आ गया। उसने पति का यथोचित सत्कार किया। उसने पूछा- 'तुमने मेरे आगमन की बात कैसे जानी ? वह बोली- 'साधु के निमित्त ज्ञान से मुझे जानकारी मिली।' भोजक ने कहा- 'क्या उसकी और भी कोई विश्वास पूर्ण बात है ?' तब उसने बताया कि आपके साथ जो भी वार्तालाप, चेष्टाएँ आदि की हैं, जो मैंने स्वप्न आदि देखें हैं, मेरे गुह्य प्रदेश में जो तिलक है, वह भी इस नैमित्तिक साधु ने यथार्थ बता दिए हैं, तब भोजक ने ईर्ष्या और क्रोध वश उस साधु से पूछा- 'इस घोड़ी के गर्भ में क्या है ?' साधु ने बताया- 'पंचपुंड वाला घोड़ी का बच्चा ।' तब उसने सोचा- 'यदि यह बात सत्य होगी तो मेरी भार्या को बताए गए मष, तिलक आदि का कथन भी सत्य होगा। अन्यथा अवश्य ही यह विरुद्ध कर्म करने वाला व्यभिचारी है अतः मारने योग्य है।' इस प्रकार चिन्तन करके उसने घोड़ी का पेट चीरा, उसमें से परिस्पंदन करता हुआ पंचपुंड किशोर निकला । उसको देखकर उसका क्रोध शांत हो गया। वह साधु से बोला- 'यदि यह बात सत्य नहीं होती तो तुम भी इस दुनिया में नहीं रहते। 14