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आहार सम्बन्धी 47 दोषों की कथाएँ... 235 देते हो तो भी तुम्हारे भाग में एक ही मोदक आता है। यदि 'अल्पवय और बहुदान' इस सिद्धान्त को सम्यक् रूप से जानते हो तो मुझे सारे मोदक दे दो । साधु के द्वारा ऐसा कहने पर उसने सारे मोदक साधु को दे दिए। लड्डुओं से पात्र भरने पर हर्ष से आप्लावित होकर वह साधु उस स्थान से जाने लगा।
इसी बीच साधु को मणिभद्र आदि साथी सम्मुख आते हुए मिल गए। उन्होंने साधु से पूछा-'भगवन्! आपको यहाँ किस वस्तु की प्राप्ति हुई ?' साधु ने सोचा कि यदि ये मोदक के स्वामी हैं तो मोदक प्राप्ति की बात सुनकर पुनः मुझसे मोदक ग्रहण कर लेंगे, इसलिए 'मुझे कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई' ऐसा कहूंगा। उसने वैसा ही कहा । मणिभद्र आदि साथियों को भार से आक्रांत पात्र देखकर शंका हो गई। उन्होंने कहा - 'हम आपका पात्र देखना चाहते हैं।' साधु ने पात्र नहीं दिखाया। तब उन्होंने बल पूर्वक साधु का पात्र देखा और कुपित होकर मोदक रक्षक पुरुष से पूछा - 'तुमने इस साधु को सारे मोदक कैसे दिए ?" वह भय से कांपता हुआ बोला- 'मैंने इनको मोदक नहीं दिए।' यह सुनकर मणिभद्र आदि सभी साथी साधु से बोले - 'तुम चोर हो तथा साधु-वेश की विडम्बना करने वाले हो । तुम्हारा मोक्ष कहाँ है' ऐसा कहकर उन्होंने साधु का वस्त्र खींचा। उसके बाद रजोहरण आदि सब कुछ लेकर उसको 'पच्छाकड़' यानी पूर्ववत गृहस्थ को बना दिया। फिर साधु राजकुल में ले गए और धर्माधिकारी को सारी बात बताई। उन्होंने साधु से सारी बात पूछी किन्तु लज्जा के कारण वह कुछ भी कहने में समर्थ नहीं हो सका। तब न्याय करने वाले अधिकारियों ने चिंतन किया- 'यह निश्चित ही चोर है लेकिन वेशधारी साधु है अतः उसे जीवित छोड़कर देश निकाला दे दिया। 11
11. धात्रीदोष : संगमसूरि और दत्त की कथा
कोल्लकिर नगर में वृद्धावस्था के कारण जंघा बल से हीन संगम आचार्य प्रवास करते थे। एक बार दुर्भिक्ष होने पर सिंह नामक शिष्य को आचार्य बनाकर उसे सुभिक्ष क्षेत्र में भेजकर दिया। वे स्वयं एकाकी रूप से वहीं रहने लगे। क्षेत्र को नौ भागों में विभक्त करके यतनापूर्वक मासकल्प और चातुर्मास करने लगे । एक वर्ष बीतने पर सिंह आचार्य ने अपने गुरु संगम आचार्य की स्थिति जानने के लिए दत्त नामक शिष्य को भेजा । वह जिस क्षेत्र में आचार्य को छोड़कर गया था, आचार्य उसी वसति में प्रवास कर रहे थे। दत्त ने अपने मन में चिंतन