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230... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 6. परिवर्तित दोष : लौकिक दृष्टांत
बसन्तपुर नगर में निलय नामक श्रेष्ठी था। उसकी पत्नी का नाम सुदर्शना था। उसके दो पुत्र थे- क्षेमंकर और देवदत्त। उसकी पुत्री का नाम लक्ष्मी था। उसी नगर में तिलक नामक सेठ रहता था, जिसकी पत्नी का नाम सुन्दरी था। उसके धनदत्त नामक पुत्र बंधुमती नामक पुत्री थी। क्षेमंकर ने समित आचार्य के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। देवदत्त के साथ बंधुमती तथा धनदत्त के साथ लक्ष्मी का विवाह हुआ।
एक बार कर्मयोग से धनदत्त को दरिद्रता का सामना करना पड़ा। दारिद्रय के कारण वह प्राय: कोद्रव धान्य का भोजन करता था। देवदत्त धनाढ्य था अत: वह सदैव शाल्योदन का भोजन करता था। एक बार क्षेमंकर साधु ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वहाँ आए। उन्होंने सोचा कि यदि मैं देवदत्त भाई के घर जाऊंगा तो मेरी बहिन के मन में चिन्तन आएगा कि मैं दारिद्रय से अभिभूत हूँ इसलिए मेरा दीक्षित भाई मेरे घर नहीं आया। वह पराभव का अनुभव करेगी अत: अनुकम्पा वश उसने उसके घर में प्रवेश किया। भिक्षा वेला आने पर लक्ष्मी ने चिन्तन किया- 'प्रथम तो यह मेरा भाई है, दूसरा यह साधु है और अभी अतिथि भी है। मेरे घर शाल्योदन नहीं है अत: कोद्रव देकर ओदन लेकर आ गई। ___ इसी बीच देवदत्त भोजन हेतु अपने घर आ गया। भोजन परिवर्तन की बात अज्ञात होने से कोद्रव भोजन को देखकर उसने सोचा कि बंधुमती ने कृपणता से आज शाल्योदन न बनाकर कोद्रव का भोजन तैयार किया है। उसने बंधुमती को मारना शुरु कर दिया। प्रताड़ित होती हुई वह बोली- 'मुझे क्यों मार रहे हो? तुम्हारी बहिन कोद्रव को छोड़कर शाल्योदन ले गई है।' धनदत्त भी जब भोजन के लिए बैठा तो बंधुमती ने क्षेमंकर मुनि को भिक्षा देकर बचे हुए शाल्योदन परोसे। उसने पूछा- 'शाल्योदन कहाँ से आया?' सारा वृत्तान्त सुनकर धनदत्त कुपित होकर बोला-'पापिनी! तुमने अपने घर से शाल्योदन पकाकर साधु को क्यों नहीं दिए? दूसरे घर से शाल्योदन मांगकर तुमने मेरा अपमान किया है।' उसने भी बंधुमती को प्रताड़ित किया। साधु ने दोनों घरों में होने वाले वृत्तान्त को लोगों से सुना। रात्रि में क्षेमंकर मुनि ने सबको प्रतिबोध देते हुए कहा- 'इस प्रकार का परिवर्तित भोजन हमारे लिए कल्पनीय नहीं है। अज्ञानतावश मैंने ग्रहण कर लिया। कलह आदि दोष के कारण भगवान ने इसका प्रतिषेध किया