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आहार सम्बन्धी 47 दोषों की कथाएँ ...227 और सुरा का पान करने से अजीर्ण हो गया था। पश्चिम रात्रि में उसने गाय के बाड़े में दुर्गन्ध युक्त अजीर्ण मल का विसर्जन किया। उसके ऊपर किसी भैंस ने आकर गोबर कर दिया। ऊपर गोबर होने से वह दुर्गन्ध युक्त मल ढंक गया। अत: देवशर्मा को अंधेरे में ज्ञात नहीं हो सका। वह गोबर सहित मल को लेकर गया और उससे सभा को लीप दिया। उद्यापनिका करने वाले लोग अनेकविध भोजन सामग्री लेकर वहाँ प्रविष्ट हुए। वहाँ उनको अत्यन्त दुर्गन्ध आने लगी, उन्होंने देवशर्मा से पूछा कि वह अशुचि पूर्ण दुर्गन्ध कहाँ से आ रही है? उसने कहा- 'मुझे ज्ञात नहीं है।' उन लोगों ने सभा के आंगन को ध्यान से देखा तो वहाँ वल्ल आदि के अवयव दिखाई दिए तथा मदिरा की गंध भी आने लगी। उन लोगों को ज्ञात हुआ कि गोबर के मध्य में पुरीष भी था। सभी लोगों ने भोजन को अशुचि मानकर छोड़ दिया। आंगन के लेप को समूल उखाड़कर दूबारा दुसरे गोबर से सभा का लेप करवाया तथा भोजन भी दूसरा पकाकर खाया। 4. क्रीतकृत दोष : मंख दृष्टांत
शालिग्राम नामक गाँव में देवशर्मा नामक मंख रहता था। उसके गृह के एक देश में कुछ साधुओं ने वर्षावास के लिए प्रवास किया। वह मंख उन साधुओं के राग-द्वेष रहित अनुष्ठान को देखकर उनका अत्यन्त भक्त बन गया। वह प्रतिदिन उनको आहार आदि के लिए निमंत्रित करता था। शय्यातर पिण्ड समझकर साधु सदैव उसका निषेध करते थे। मंख ने सोचा कि ये साधु मेरे घर से भक्त-पान आदि ग्रहण नहीं करते हैं, यदि मैं इनको अन्यत्र स्थान पर भिक्षा दूंगा तो भी ये ग्रहण नहीं करेंगे अत: जब ये विहार करके आगे जायेंगे तब मैं भी आगे जाकर किसी भी प्रकार इनको भिक्षा दूंगा। वर्षावास के कुछ दिन शेष रहने पर उसने साधुओं से पूछा- 'चातुर्मास के पश्चात आप किस दिशा में जायेंगे? साधुओं ने सहजता से उत्तर दिया कि अमुक दिशा में जायेंगे। वह मंख उसी दिशा में किसी गोकुल में अपने पट को दिखाकर वचन-कौशल से लोगों के चित्त को आकृष्ट करने लगा। लोग उसको घी, दूध आदि देने लगे। मंख ने कहा- 'जब मैं आप लोगों से मांगू, तब आप लोग घी, दूध आदि देना।'
चातुर्मास के पश्चात साधु ग्रामानुग्राम विहार करने लगे। मंख ने अपने आपको प्रकट न करते हुए पूर्व प्रतिषिद्ध घरों से दूध, घी आदि की याचना करके एक घर में उनको एकत्र कर लिया। उसने साधुओं को निमंत्रित किया। छद्मस्थ होने