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210... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन दोष के समान ही हैं। इसमें ‘कारण' दोष को छोड़कर शेष चार नाम श्वेताम्बर के समान ही हैं। यद्यपि इसी परम्परा के मूलाचार नामक ग्रन्थ में श्वेताम्बर मान्यतानुसार मंडली के पाँच दोषों का सूचन है। इससे कहा जा सकता है कि इस आम्नाय में भी दो तरह की विचारधाराएँ रही हैं, जिसमें एक धारा ने श्वेताम्बर आगमों का अनुकरण किया है।
क्रम वैभिन्य- श्वेताम्बर परम्परा में मंडली के पाँच दोषों में 'संयोजना" नामक दोष को प्रथम स्थान पर रखा गया है जबकि दिगम्बर परम्परा के अनगार धर्मामृत में संयोजना को चौथा स्थान दिया है। इसी तरह दूसरे ‘परिमाण' नामक दोष को तीसरा स्थान दिया है। तीसरे 'अंगार' नामक दोष को प्रथम स्थान प्राप्त है। चौथे 'धूम' नामक दोष को दूसरे क्रम पर रखा गया है। मूलाचार में इन दोषों का क्रम श्वेताम्बर के समान है।
यहाँ यह भी उल्लेख्य है कि श्वेताम्बर परम्परा में मुनि के लिए 42 दोषों से रहित आहार करने का विधान है जबकि दिगम्बर परम्परा में इन दोषों के अतिरिक्त चौदह मल एवं बत्तीस अन्तराय से रहित भोजन ग्रहण करने का उल्लेख है।50
प्रसंगवश चौदह मलों के नाम इस प्रकार हैं
1. पीव 2. रूधिर 3. मांस 4. हड्डी 5. चर्म 6. नख 7. केश 8-10. मृत विकलेन्द्रिय-बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय 11. कन्द, सूरण आदि 12. बीज उगने योग्य जौ आदि धान्य या अंकुरित जौ वगैरह, मूली आदि 13. फल-बोर आदि 14. कणकुण्ड-कण यानी गेहूँ आदि का बाह्य भाग या चावल आदि, कुण्ड यानी धान आदि का आभ्यन्तर सूक्ष्म अवयव- ये चौदह आहार सम्बन्धी मल हैं51
भोजन के समय इनमें से कुछ वस्तुओं का दर्शन या स्पर्शन होने पर या कुछ के भोजन में आ जाने पर आहार छोड़ दिया जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा मूलक ग्रन्थों में आहार सम्बन्धी सैंतालीस दोषों को लेकर अन्तर्विरोध अवश्य है किन्तु मूलभूत उद्देश्य समान हैं।
आहार के 47 दोषों का तुलनात्मक चार्ट
* पूर्व वर्णन के अनुसार श्वेताम्बर-दिगम्बर ग्रन्थों में उद्गम दोषों के नाम एवं क्रम में जो अंतर मिलता है, उन दोषों का चार्ट इस प्रकार है