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भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ...205 प्रकार वैभिन्य- श्वेताम्बर मतानुसार पूतिकर्म के द्रव्य और भाव दो भेद हैं जबकि दिगम्बर परम्परा में पूति दोष के दो प्रकार निम्न हैं- (i) अप्रासुक मिश्र
और (ii) कल्पित। जो खाद्य द्रव्य स्वरूपत: प्रासुक हैं उनमें अप्रासुक द्रव्य मिला देना, अप्रासुक मिश्र नामक पूति दोष है तथा इस चूल्हे पर बनाया गया भोजन जब तक साधु को न दिया जाये तब तक कोई भी इसका उपयोग न करे ऐसा संकल्पित आहार प्रदान करना, कल्पित नामक पूति दोष है।35_
मूलाचार में चूल्हा, ओखली, कड़छी या चम्मच, बर्तन और गन्ध के निमित्त से अप्रासुक मिश्र नामक पूति दोष पाँच प्रकार का बताया गया है। मूलाचार में प्रादुष्करण दोष के भी दो भेद किये गये हैं- 1. संक्रमण और 2. प्रकाश। आहार दान निमित्त भोजन के पात्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना संक्रमण दोष है। मण्डप में प्रकाश करके आहार बहराना प्रकाश दोष है।36
सुस्पष्ट है कि दोनों परम्पराओं में उद्गम दोष के 16 भेदों में नाम, स्वरूप एवं क्रमादि की अपेक्षा कुछ समानता तो कुछ असमानता है।
सोलह उत्पादना दोषों की अपेक्षा- दिगम्बर परम्परा के अनगार धर्मामृत में उत्पादना सम्बन्धी सोलह दोषों के नाम इस प्रकार हैं- 1. धात्री 2. दूती 3. निमित्त 4. वनीपक 5. आजीवक 6. क्रोध 7. मान 8. माया 9. लोभ 10. पूर्व स्तवन 11. पश्चात स्तवन 12. वैद्यक 13. विद्या 14. मन्त्र 15. चूर्ण और 16. वश।37
मूलाचार में उत्पादना सम्बन्धी सोलह दोषों के नाम निम्न प्रकार हैं- 1. धात्री 2. दूती 3. निमित्त 4. आजीव 5. वनीपक 6. चिकित्सा 7. क्रोधी 8. मानी 9. मायावी 10. लोभी 11. पूर्व स्तुति 12. पश्चात स्तुति 13. विद्या 14. मन्त्र 15. चूर्णयोग और 16. मूलकर्म।38
श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं में उत्पादना सम्बन्धी दोषों के नाम, क्रम एवं स्वरूप को लेकर इस तरह का अन्तर है
नाम वैभिन्य - श्वेताम्बर परम्परा में 12वाँ दोष 'विद्या' नाम का स्वीकारा गया है किन्तु अनगार धर्मामृत में इसके स्थान पर 'वैद्यक' नामक दोष का निर्देश है। श्वेताम्बर परम्परा में सोलहवाँ दोष ‘मूलकर्म' बताया गया है और मूलाचार में इसका नाम 'मूलकर्म' ही रखा है।39
• श्वेताम्बर परम्परा में उत्पादना सम्बन्धी चौथा दोष 'आजीवक' है