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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...153 शय्यातरपिण्ड कहलाता है। वसति दाता किन स्थितियों में शय्यातर होता है? इससे संदर्भित विस्तृत चर्चा खण्ड-5 में की जा चुकी है। यहाँ आशय यह है कि मुनि को शय्यातर का आहार नहीं लेना चाहिए। राजपिण्ड- प्रत्येक तीर्थंकरों के साधु-साध्वियों का यह आचार है कि उन्हें बिना अपवाद के राजा के निमित्त बनाया गया सरस और गरिष्ठ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। नित्याग्रपिण्ड- प्रतिदिन निमंत्रण पूर्वक एक घर से दी जाने वाली भिक्षा नित्याग्रपिण्ड कहलाती है। मुनि को नित्याग्र भिक्षा का सेवन नहीं करना चाहिए। किमिच्छक - कौन क्या चाहता है, यह पूछकर दिया जाने वाला आहार किमिच्छक कहलाता है। दशवैकालिक सूत्र में इसे अनाचार के अन्तर्गत स्वीकार किया है। जैन मुनि को इस प्रकार का दूषित आहार प्राप्त नहीं करना चाहिए। अग्रपिण्ड- गृहस्थ के घरों में गाय, कुत्ता या भिखारी को देने के लिए जितना आहार अलग से रखा जाता है वह अग्रपिण्ड कहलाता है। जैन मुनि के लिए अग्रपिण्ड लेने का निषेध है क्योंकि इससे गाय आदि के अंतराय का दोष लगता है। बालिका भक्त- वर्षा होने पर या गहरे बादल छाए रहने पर गृहस्थ द्वारा मुनि के लिए जो आहार तैयार किया जाता है, वह बार्दलिका भक्त कहलाता है। यह आहार मुनि के लिए दोषकारी है। इसी तरह कान्तार भक्त (अटवी में साधु के निमित्त बनाया गया भोजन), प्राघूर्णक भक्त (अतिथि के निमित्त बनाया हआ भोजन), ग्लान भक्त (रोगी के आरोग्य हेतु दिया जाने वाला आहार), निवेदना पिण्ड (मणिभद्र आदि देवताओं को अर्पित करने के उद्देश्य से निर्मित आहार), मृतक भोज (मरने के पश्चात बारहवें दिन किया जाने वाला भोज) आदि मुनि को ग्रहण नहीं करना चाहिए। अन्यथा कई दोषों की संभावनाएँ रहती है। आहार शुद्धि के अभाव में लगने वाले दोष श्रमण जीवन की प्रशस्त साधना हेतु आहार का निर्दोष होना परम आवश्यक है। दिगम्बर परम्परावर्ती मूलाचार में मुनि के मूलगुण और उत्तरगुण रूपी सभी योगों में भिक्षाचर्या को मूल योग कहा गया है। चारित्र, तप एवं संयम की पवित्रता आहार शद्धि पर ही निर्भर है अत: आहार विवेक समग्र साधना का एक प्रधान अंग भी है। इसकी उपेक्षा करके साधना के किसी भी क्षेत्र में प्रगति करना असंभव है।258
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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