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150... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
4. स - धूम दोष
नीरस या अप्रिय आहार की अथवा दाता की निंदा करते हुए खाना धूम दोष है। 253 जैसे धूएँ से आच्छादित चित्र सुशोभित नहीं होता, वैसे ही धूम दोष से युक्त मलिन चारित्र भी सुशोभित नहीं होता | 254
परिणाम - आहार की प्रशंसा करने वाला मुनि चारित्र को अंगारे की भाँति दग्ध कर देता है तथा निन्दा करने वाला मुनि संयम धर्म को धूमिल कर देता है। 5. कारण दोष
निष्प्रयोजन आहार करना कारण दोष है। आगमों में आहार करने और न करने के छह-छह कारण बताये गये हैं । क्षुधा आदि छह कारणों के बिना आहार करना तथा आहार त्याग के छह कारणं उपस्थित होने पर भी आहार का परित्याग नहीं करना कारण दोष है।
आहार करने के प्रयोजन
उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार जैन मुनि निम्न छह कारणों से आहार करें1. वेदना - भूख के समान कोई वेदना नहीं होती तथा उसे शान्त किये बिना संयम का पालन अशक्य हो जाता है अतः क्षुधा वेदना को शांत करने के लिए आहार करना चाहिए।
2. वैयावृत्य - गुरु एवं रोगी आदि की सेवा के लिए आहार करना चाहिए, क्योंकि भूखा साधु अच्छी तरह से वैयावृत्य नहीं कर सकता।
3. ईर्ष्या समिति - ईर्यासमिति के प्रति जागरूक रहने के लिए आहार करना चाहिए।
4. संयम रक्षा - संयम की विधिवत अनुपालना करने के लिए आहार करना चाहिए।
5. प्राण वृत्ति - श्वासोश्वास आदि प्राणों को टिकाये रखने के लिए आहार करना चाहिए।
6. धर्म चिन्ता - स्वाध्याय, वाचना, धर्मध्यान आदि प्रवृत्तियों का सम्यक रूप से निर्वहन करने के लिए आहार करना चाहिए ।
उत्कृष्ट कोटि की साधना पथ पर आरूढ़ हुआ मुनि आहार क्यों करे? इसका रहस्य उद्घाटित करते हुए आचार्य भद्रबाहु ने कहा है कि भूखा साधु