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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ... 129 1. पुरः कर्म - साधु को भिक्षा देने से पूर्व सचित्त जल से हाथ धोना । 2. पश्चात्कर्म - साधु को भिक्षा देने के पश्चात सचित्त जल से हाथ धोना । 3. सस्निग्ध- सचित्त जल द्वारा आंशिक रूप में भीगे हुए हाथों से भिक्षा ग्रहण करना। 4. उदकार्द्र– जिससे पानी टपक रहा हो, ऐसे सचित्त जल से युक्त हाथ से भिक्षा ग्रहण करना। वनस्पतिकाय प्रक्षित - तुरन्त सुधारे हुए आम के टुकड़ों आदि से लिप्त हाथ द्वारा भिक्षा ग्रहण करना, वनस्पतिकाय प्रक्षित दोष है। अग्निकाय, वायुकाय और त्रसकाय इन तीनों का भिक्षा के साथ संसर्ग होने पर भी उनसे हाथादि के लिप्त होने की संभावना ही नहीं रहती है अतः आहार इनसे प्रक्षित नहीं होता। इसीलिए इन तीनों का यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है। सार रूप में कहा जाए तो उक्त सचित्त प्रक्षित सम्बन्धी भिक्षा मुनि के लिए सर्वथा अग्राह्य है। अचित्त प्रक्षित दोष दो प्रकार का कहा गया है (i) अचित्त गर्हित - चर्बी आदि घृणित वस्तुओं से लिप्त हाथ आदि द्वारा भिक्षा लेना, अचित्त गर्हित दोष है । घृत आदि से लिप्त हाथ आदि द्वारा भिक्षा लेना (ii) अचित्त अगर्हित अचित्त अगर्हित दोष है। - अचित्त प्रक्षित में भी हाथ और पात्र से सम्बन्धित चार विकल्प बनते हैं। इस चतुर्भंगी में आहार ग्रहण की भजना है। इसमें अगर्हित प्रक्षित से युक्त हाथ और पात्र के द्वारा भिक्षा ग्राह्य है लेकिन गर्हित प्रक्षित भिक्षा का प्रतिषेध है। अगर्हित में भी गोरसद्रव, मधु, घृत, तेल, गुड़ आदि से खरडित हाथ या पात्र यदि जीवों से संसक्त हैं तो वह भिक्षा वर्ज्य है क्योंकि इससे मक्षिका, पिपीलिका आदि जीवों के हिंसा की संभावना रहती है | 204 सामान्यतः स्थविरकल्पी मुनि घृत, गुड़ आदि से खरडित हाथों द्वारा विधि पूर्वक भिक्षा ग्रहण कर सकते हैं लेकिन जिनकल्पिक मुनि ऐसे हाथों से भिक्षा नहीं ले सकते। लोक में घृणित मांस, वसा, शोणित और मदिरा आदि से खरडित हाथ या पात्र से आहार लेना तो सभी के वर्जित ही है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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