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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...103 'मैं कुछ समय बाद भिक्षा दूंगी।' साधु को किसी दूसरे स्थान से दूध मिल गया। उधर गृहिणी ने जब साधु से दूध लेने का आग्रह किया तो मुनि बोला-'मुझे अभी दूध प्राप्त हो गया फिर कभी प्रयोजन होने पर लूंगा।' साधु के ऋण से भयभीत उस महिला ने दूध का उपयोग नहीं किया। उसने सोचा कल इसी दूध को मैं दही जमाकर दूंगी। यह सोचकर उसने दूध को मुनि के लिए स्थापित कर दिया। दूसरे दिन भी मुनि ने दही नहीं लिया। महिला ने उस दही से मक्खन और मक्खन को घी रूप में परिवर्तित कर दिया। यदि गृहिणी उस घी को कटुम्ब के लिए उपयोग में नहीं लेती है तो वह रखा गया घी देशोनपूर्वकोटि62 तक स्थापना दोष से युक्त रह सकता है।63 जीतकल्प भाष्य में इसे चिरस्थापित दोष माना गया है।64 स्थापना दोष को प्रकारान्तर से व्याख्यायित करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि पंक्तिबद्ध तीन घरों से कोई भी साधु को भिक्षा देने के लिए आए उस समय एक साधु भिक्षा को सम्यक उपयोग पूर्वक ग्रहण करता है तथा दूसरा साधु दो घरों के बीच में खड़े होकर भिक्षा की अनेषणीयता आदि का उपयोग रखता है। इस प्रकार तीन घर के पश्चात वह आहार स्थापना दोष युक्त होता है।65 जीतकल्प भाष्य में इसे इत्वरिक स्थापना दोष के अन्तर्गत रखा गया है।66 पिण्डविशुद्धि प्रकरण में इसको अभ्याहृत दोष के अन्तर्गत व्याख्यायित किया है।67 6. प्राभृतिका दोष अपने इष्ट अथवा पूज्य को बहुमान पूर्वक उपहार स्वरूप अभीष्ट वस्तु देना प्राभृत कहलाता है। साधु को ऐसे आहार का दान देना प्राभृतिका दोष है। साधु को कुछ भेंट स्वरूप देने के भाव से स्वादिष्ट आहार तैयार कर प्रदान करना प्राभृतिका दोष है।68 यह दोष दो प्रकार का कहा गया है- 1. सूक्ष्म प्राभृतिका और 2. बादर प्राभृतिका। (i) बादर प्राभृतिका- अधिक आरम्भ युक्त इच्छित वस्तु बहराना, बादर प्राभृतिका दोष है। (ii) सूक्ष्म प्राभृतिका- सूक्ष्म आरम्भ युक्त स्वादिष्ट वस्तु प्रदान करना अथवा भेंट रूप में कुछ देना, सूक्ष्म प्रभृतिका दोष है।69
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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