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100... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
2. उपधि पूतिकर्म- आधाकर्मिक धागे से शुद्ध वस्त्र और पात्र की सिलाई करना, उपधि पूतिकर्म दोष है।
3. वसति पूतिकर्म- शुद्ध वसति में मूलगुण- उत्तरगुण सम्बन्धी आधार्मिक बांस, काष्ठ आदि का उपयोग करना, शय्या पूतिकर्म दोष है।
पिण्डनियुक्ति में बादर पूतिकर्म के उपकरण और भक्तपान ऐसे दो भेद किये गये हैं। उपकरण विषयक बादरपूति का स्वरूप पूर्ववत जानना चाहिए। भक्तपान बादर पूतिकर्म का अर्थ है शुद्ध छाछ आदि में आधाकर्मिक, लवण, हींग, राई, जीरा आदि का मिश्रण करना अथवा बघार देना।46
स्पष्ट है कि श्रमण के उद्देश्य से निर्मित किया गया आहार आधाकर्मी कहलाता है तथा आधाकर्म से सम्मिश्रित आहार पतिकर्म दोष युक्त कहलाता है। पिण्डनियुक्ति में यह भी उल्लेख है कि जिस घर में आधाकर्मी आहार बना हो वह घर उस दिन से तीन दिन तक पूति दोष युक्त रहता है। अत: मुनि को तीन दिन वहाँ भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए।47
पूति दोष के भेद-प्रभेदों को निम्न चार्ट से भलीभाँति समझा जा सकता है।
__ पूति
द्रव्य
भाव
बादर
सूक्ष्म
उपकरण विषयक भक्तपान विषयक ईंधन धूम वाष्प अग्निकण
निशीथ भाष्य के अनुसार बादरपूति के भेद-प्रभेद इस प्रकार हैं-48
बादरपूति
आहार
उपधि
वसति
उपकरणपूति आहारपूति वस्त्र
पात्र मूलगुण
उत्तरगुण