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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...97
(i) ओघ औद्देशिक- 'यहाँ कुछ नहीं दूंगा तो अगले जन्म में कुछ नहीं मिलेगा' यह सोचकर गृहस्थ द्वारा पकाए जा रहे आहार में अन्य दर्शनी साधुओं के लिए विभाग किये बिना ही अधिक चावल आदि डालकर बनाया गया आहार ओघ औद्देशिक है | 33
(ii) विभाग औद्देशिक श्रमण, ब्राह्मण आदि का विभाग करके जो भोजन पकाया जाता है वह विभाग औद्देशिक है। पिण्डनिर्युक्ति के अनुसार विवाह आदि उत्सव समाप्त होने के पश्चात का शेष बचे हुए पक्वान्न का कुछ हिस्सा दान हेतु अलग रखना विभाग औद्देशिक है। 34 इसके तीन प्रकार हैंउद्दिष्ट, कृत और कर्म ।
(i) उद्दिष्ट औद्देशिक - अपने लिए बनाये हुए भोजन में से साधु के लिए अलग हिस्सा निकाल कर रखना अथवा मुनियों को देने के उद्देश्य से अधिक भोजन बनाना उद्दिष्ट औद्देशिक है। इसमें साधु को भिक्षा देने का उद्देश्य होने से इसे उद्दिष्ट औद्देशिक दोष कहा गया है। 35
(ii) कृत औद्देशिक विवाहादि के अवसर पर भोजनोपरान्त बचे हुए भोजन को दान हेतु संस्कारित करना, जैसे चावल का करबा आदि बनाना कृत औद्देशिक है। इसमें निर्मित आहार को पुनः संस्कारित किए जाने से इसे कृत औद्देशिक कहा गया है। 36
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(iii) कर्म औद्देशिक विवाह में बचे हुए मोदक के चूरे को भिक्षाचरों में वितरित करने हेतु गुड़पाक आदि से पुनः मोदक रूप बनाना कर्म औद्देशिक कहा जाता है।
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आधाकर्म और कर्म औद्देशिक में यह अंतर है कि आधाकर्मी आहार प्रारंभ से ही साधु के निमित्त बनाया जाता है जबकि कर्म औद्देशिक में गृहस्थ अपने बनाए हुए आहार में कुछ वृद्धि करता है अथवा संस्कारित करता है।37
उद्दिष्ट, कृत और कर्म - इन तीनों के चार-चार अवान्तर भेद होते हैंउद्देश, समुद्देश, आदेश और समादेश ।
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(i) उद्देश – जो कोई भिक्षा के लिए आयेगा उन सभी को अमुक प्रकार की भिक्षा देने का संकल्प किया गया आहार उद्देश है।
(ii) समुद्देश - 'यह भिक्षा अन्य दर्शनी साधुओं को दूंगा' इस प्रकार का संकल्पित आहार जैन मुनि को बहराना समुद्देश है।