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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...93 नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने आधाकर्म की विशद व्याख्या हेतु नौ द्वार भी बतलाये हैं-1. आधाकर्म के नाम 2. उसके एकार्थक 3. किसके लिए बनाया आधाकर्म? 4. आधाकर्म का स्वरूप 5. परपक्ष 6. स्वपक्ष 7. अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि चार दोष 8. आधाकर्म का ग्रहण 9. आज्ञा भंग आदि दोष।
पिण्डविशद्धि प्रकरण में भी नौ द्वारों का उल्लेख किया गया है लेकिन उनमें कुछ भिन्नता है। पिण्डनियुक्ति में प्रश्नवाचक के रूप में द्वारों का संकेत है, जबकि पिण्डविशुद्धिप्रकरण में सर्वनाम के रूप में। वहाँ 1. यत्-जो (स्वरूप) 2. यस्य-जिसका 3. यथा- जिस रूप में आधाकर्म दोष लगता है 4.यादृश-वान्त आदि की उपमा द्वारा आधाकर्म की स्पष्टता 5. दोष 6. आधाकर्म आहार देने वाले श्रावक के दोष 7. यथापृच्छा विधि-परिहार 8. छलना 9. शुद्धि- इस तरह नौ द्वारों का वर्णन है।
इन द्वारों की विस्तृत जानकारी हेतु पिण्डनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति मलयगिरि टीका, जीतकल्पभाष्य, पिण्डविशुद्धिप्रकरण आदि ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए।
परिणाम- आचार्य मलयगिरि ने आधाकर्म आहार को हेय बताते हुए कहा है कि जैसे सहस्रानुपाती विष के प्रभाव से हजारवाँ व्यक्ति भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, वैसे ही आधाकर्म आहार के कण मात्र से संस्पृष्ट हजारवें व्यक्ति के पास जाने पर भी वह आहार मुनि के संयमी जीवन का नाश करने वाला होता है।15 ___ नियुक्तिकार के अनुसार आधाकर्म आहार ग्रहण करने से निम्न चार दोष लगते हैं-1. जिनेश्वर की आज्ञा का भंग 2. अनवस्था अर्थात दोष की परम्परा का चलते रहना 3. मिथ्यात्व की प्राप्ति और 4. विराधना।16
पिण्डविशुद्धिप्रकरण में यहाँ एक प्रश्न उठाया गया है कि जब मुनि आधाकर्म आहार न निष्पन्न करते हैं, न करवाते हैं और न ही उसका अनुमोदन करते हैं तो फिर तीन योगों से शुद्ध मुनि के लिए गृहस्थ द्वारा कृत आधाकर्म आहार ग्रहण करने में क्या दोष है?17
इसका उत्तर देते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि यदि मुनि जानते हुए आधाकर्म आहार को ग्रहण करता है तो इसका तात्पर्य है कि वह आधाकर्म भोजन बनाने