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वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...87 सन्दर्भ-सूची 1. आचारांगसूत्र, 1/8/3/210 2. पंचाशक प्रकरण, 13/30-31 3. सुरुदयत्थमणादो, णालीतिय वज्जिदे असणकाले । तिग-दुग-एग-मुहुत्ते, जहण्ण मज्झिममुक्कस्से ।।
मूलाचार, 6/492 की टीका 4. मूलाचार, 1/35 5. वही, 5/318 की टीका 6. भगवती आराधना, 1200 की टीका 7. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 1/35
(ख) दशवैकालिकसूत्र, 5/1/83 8. पिण्डनियुक्ति, 642, 650, 652 9. ओघनियुक्ति, 587-588 10. पिण्डनियुक्ति, 649 11. दशवैकालिकसूत्र, 5/2/38 12. वही, 5/2/33 13. जिनभाषित, पृ. 33 14. वही, पृ. 33-35 15. वही, पृ. 23-25 16. ठाणे अ दायए चेव, गमणे गहणाऽऽगमे। ... पत्ते परिअत्ते पहिए, अ गुरुअं तिहा भावे।।
ओघनियुक्ति, 462 17. पमाणे' काले आवस्सए' अ, संघाडए' अ उवगरणे। मत्तय काउसग्गो? जस्स, च जोगो सपडिवक्खो।।
ओघनियुक्ति, 411 18. बृहत्कल्पभाष्य, 1703 19. ओघनियुक्ति, 426