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76... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन कुलों में चाहे जन्मत: वे किसी भी जाति के हों, जैन साधु उन घरों में आहारादि के लिए प्रवेश कर सकता है।
दशवैकालिक सूत्र में उच्च-नीच और मध्यम कुलों में भिक्षाचर्या करने का जो उल्लेख है, वह जाति को लक्ष्य में रखकर नहीं है अपितु सम्पन्न-विपन्न को ध्यान में रखकर किया गया है। अहिंसा की साधना करने वाला श्रमण संकुचित दायरे से ऊपर उठा हुआ होता है। इसलिए आहारादि के लिए सम्पन्न-विपन्न सब घरों में प्रवेश करता है। उसके लिए उन्हीं कुलों या घरों का वर्जन किया गया है जिनका आचार-विचार और वृत्ति जुगुप्सित या गर्हित हो। ___ यदि आहार ग्रहण करने के विषय में उच्च-नीच का भेद भाव होता तो आचारांगसूत्र के मूल पाठ में नापित, बढ़ई, तन्तुवाय आदि के घरों से भिक्षा लेने का उल्लेख कैसे हो सकता है? जिन कुलों का उल्लेख किया गया है उनमें से बहुत से वंश तो आज लुप्त हो चुके हैं। क्षत्रियों में भी हूण, शक, यवन आदि वंश के लोग परस्पर मिल चुके हैं। इसलिए किसी भी जाति या वंश के घर हों, वहाँ से मुनि भिक्षा ग्रहण कर सकता है बशर्ते कि वह घर निन्दित और घृणित न हो।47 __आचारांगसूत्र के अनुसार जैन मुनि निम्न कुलों (घरों) में भिक्षार्थ जा सकता है।48 __ 1. उग्रकुल – रक्षक कुल, जो जनता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता हो।
2. भोगकुल - जो जन समुदाय राजा आदि के लिए भी पूजनीय हो, जैसे पुरोहित, ब्राह्मण आदि।
3. राजन्यकुल - जो जन-जातियाँ राजा के लिए मित्रवत मानी जाती हों।
4. क्षत्रिय कुल - राठौड़ आदि वीर योद्धाओं का जन समुदाय, जो राष्ट्र की सुरक्षा करने वाला हो।
5. इक्ष्वाकु कुल - भगवान ऋषभदेव के वंशज। 6. हरिवंश कुल - भगवान अरिष्टनेमि के वंशज। 7. एसिय कुल - गोपालक गोष्ठों (अहीरों) का कुल।
8. वैश्य कुल - वणिक (चूर्णिकार के मतानुसार रंग का काम करने वालों का) कुल।