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72... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
• संखडी निषेध का दूसरा कारण यह है कि बृहद भोजों में नर-नारियों की भीड़-भाड़ बहुत होती है जिससे साधु-साध्वियों को स्त्री-पुरुषों के संघट्टे (स्पर्श) का दोष, सचित्त पदार्थों के संघट्टे का दोष एवं आहार सम्बन्धी शुद्धिअशुद्धि की गवेषणा न कर सकने सम्बन्धी दोषों की भी संभावनाएँ रहती हैं।
• ऐसे स्थानों पर साधु-साध्वी को देखकर लोगों को इस विषयक अश्रद्धा हो सकती है कि ये स्वाद या आहार की लोलुपता के कारण ही इस भोज में आये हैं।
• यदि श्रद्धाल गृहस्थ को यह ज्ञात हो जाये कि अमुक साधु-साध्वी इस आयोजन के अवसर पर पधार रहे हैं और उन्हें किसी भी स्थिति में आहार देना ही है तो यह सोचकर वह उनके उद्देश्य से अन्य खाद्य सामग्री तैयार करवा सकता है, खरीदकर ला सकता है, किसी से छीनकर ला सकता है इस प्रकार आधार्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, क्रीत, अभिहत, प्रामित्य सम्बन्धी दोष लगने की संभावना रहती है। इसीलिए केवलज्ञानियों ने इसे कर्मबन्ध का कारण कहा है।
• कई बड़े भोज पूरे दिन-रात या दो-तीन दिन तक चलते रहते हैं। यदि गृहस्थ को ज्ञात हो जाये कि यहाँ मुनि भगवन्त पधारने वाले हैं तो वह उनके ठहरने के लिए अलग से प्रबन्ध कर सकता है, अपने मकान में तोड़-फोड़ कर रंग-रोगन करवाकर, फर्श पर उगी हुई हरी घास को उखड़वाकर सुसज्जित कर सकता है, इससे आरंभ आदि अनेक दोष लगते हैं। इसके अतिरिक्त आहार आदि के लिए संखडी में जाने पर अपमान अथवा चोट आदि की भी संभावना रहती है।
• संखडी में जाने से पारस्परिक संघर्ष और साधु के गौरव की हानि भी हो सकती है। संखडी दो तरह की होती है- 1. आकीर्ण और 2. अवम। जिस प्रीतिभोज में भिखारियों की अत्यधिक भीड़ हो वह आकीर्ण संखडी कहलाती है
और जहाँ आहार थोड़ा बनाया हो किन्तु याचक अधिक आ गए हों, वह अवम संखडी कहलाती है। इन दोनों संखड़ियों में आहार लेने से बाह्य-आभ्यन्तर दोनों तरह का संघर्ष होता है। एक-दूसरे के अंगों से टकराना या पैर से पैर कुचल जाना या मुठभेड़ होना बाह्य संघर्ष है। पहले भिक्षा प्राप्त करने के लिए धक्का मुक्की भी हो सकती है तथा मांगने वाले अधिक हो जाए और आहार कम हो