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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...61 • भिक्षादात्री बेइन्द्रिय आदि जीवों, बीजों और हरी वनस्पतियों का मर्दन करती हुई भिक्षा ला रही हो तो वह ग्रहण न करें। __• भिक्षादात्री आहार देने हेतु अचित्त वस्तु में सचित्त वस्तु मिलाकर अथवा अचित्त वस्तु पर सचित्त वस्तु रखकर अथवा सचित्त वस्तु का स्पर्श करके अथवा सचित्त जल को एक तरफ करके आहार-पानी लाए तो मुनि ग्रहण न करें। • इसी प्रकार सचित्त जल, सचित्त रज, सचित्त मिट्टी, खार, हरताल, हिंगुल, मैनसिल, अंजन, नमक, पीली मिट्टी, सफेद खड़िया मिट्टी, फिटकरी तत्काल पीसा हुआ आटा, तत्काल कूटे हुए धान के तुष आदि पदार्थों से हाथ सने हुए हों तो उस भिक्षादात्री से आहारादि कुछ भी न लें। • दो व्यक्ति भोजन कर रहे हों उनमें से एक व्यक्ति निमंत्रित करें तो भी मुनि उस आहार को ग्रहण न करें क्योंकि उस आहार में अनिमंत्रित व्यक्ति का भी हिस्सा है। • जो भोजन-पानी शुद्ध या अशुद्ध की शंका से युक्त हो, मुनि उसे ग्रहण न करें। • गेहूँ आदि चार प्रकार का आहार यदि अग्नि के ऊपर रखा हुआ हो अथवा अग्नि के साथ संस्पर्शित हो रहा हो, अग्नि को बुझाकर, अग्नि पर पकते हुए आहार में से कुछ बाहर निकालकर, उफनते हुए दूध आदि में पानी का छिड़का देकर, अग्नि पर रहे हुए बर्तन को नीचे उतारकर आहार पानी दिया जाए तो वह मुनि के लिए अग्राह्य है अत: उसे ग्रहण न करें। . भिक्षार्थ मुनि अपक्व कन्द, छिला हआ पत्ती का शाक, लौकी और अदरख आदि सभी प्रकार की सचित्त वनस्पति जो अग्नि के शस्त्र से परिणत न हुई हो उसे ग्रहण न करें। • जिस प्रकार सचित्त वनस्पति आदि अग्राह्य है उसी प्रकार दुकान पर बेचने के लिए अनेक दिनों से खुले रूप में रखा हुआ सचित्त रजयुक्त सत्तू का चूर्ण, तिलपपड़ी, गीला गुड़ इसी तरह की अन्य वस्तुएँ भी मुनि ग्रहण न करें। इन्हें लेने का निषेध इसलिए किया गया है कि ऐसी वस्तुओं पर मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं, कीड़े और चीटियाँ चारों ओर चढ़ी रहती हैं, वे भी मर जाती हैं। कई बार बहुत दिनों से पड़ी हुई गीली खाद्य वस्तुओं में लीलण-फूलण
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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