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वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम 57
भिक्षागमन सम्बन्धी नियम - दशवैकालिक सूत्र के अनुसार जब भिक्षा काल उपस्थित हो जाये उस समय मुनि आहारादि के प्रति अनासक्ति के भाव रखते हुए उपाश्रय से प्रस्थान करें ।
• मार्ग में चलते हुए जीव हिंसा न हो जाये, अतः सजगता पूर्वक चलें और ईर्यासमिति का पालन करते हुए चलें।
• भिक्षा के लिए प्रस्थित हुए मुनि मार्ग में धीमे-धीमे चलें।
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• भिक्षार्थ जाते समय हिलते हुए काष्ठ, शिला, ईंट अथवा कच्चे पुल के ऊपर से गमन न करें, क्योंकि इनके हिलने से जीव हिंसा की संभावना रहती है। जो मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो, गड्डे आदि से युक्त हो, कीचड़ से सना हुआ हो, ठूंठ आदि (कटे हुए सूखे पेड़) से बाधित हो तो अन्य मार्ग के होने पर वहाँ से गमन न करें, क्योंकि गड्ढे आदि में गिर जाए या पाँव फिसल जाये तो त्रस या स्थावर जीवों की हिंसा हो सकती है।
• भिक्षार्थी मुनि शील धर्म की सुरक्षा हेतु वेश्या स्थानों के निकट से होकर गमन न करें, क्योंकि वहाँ का वातावरण वासना को उद्दीप्त करने वाला होता है। • जिस मार्ग पर बहुत से प्राणी भोजन के लिए एकत्रित होकर बैठे हों, जैसे कुक्कुट जाति, शूकर जाति, अग्रपिण्ड के लिए कौए आदि हों तो अन्य मार्ग के होने पर उस मार्ग से न जाएं।
• जिस मार्ग में नव प्रसूता गाय, उन्मत्त बैल, हाथी आदि खड़े हुए हों, बच्चों का क्रीड़ा स्थल हो, अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध हो रहा हो तो अन्य मार्ग के होने पर उस मार्ग का त्याग कर दें।
• यदि वर्षा हो रही हो, कोहरा गिर रहा हो या आंधी चल रही हो अथवा मार्ग में छोटे-बड़े संपातिम जीव उड़ रहे हों तो उस मार्ग से गमनागमन नहीं करें। • भिक्षा के लिए प्रस्थित हुआ मुनि न तो उन्नत होकर (ऊँचा मुंह करके), न अवनत होकर (नीचा मुँह करके), न हर्षित होकर और न ही आकुल-व्याकुल होकर चले, अपितु इन्द्रियों को संयमित रखते हुए चलें ।
• भिक्षा के लिए उद्यत हुआ मुनि जल्दी-जल्दी न चलें, हंसी-मजाक करते हुए न चलें और बोलते हुए भी न चलें, क्योंकि इससे संयम विराधना होती है अतः मौन पूर्वक चलें।
• भिक्षाचर्या के लिए गमन करता हुआ मुनि गृहस्थों के घर की