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54... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
रखते, स्थण्डिल के निमित्त जब पानी की जरूरत पड़ती है तब ही लाते थे। परन्तु आजकल रात्रि में चूने का पानी रखने का व्यवहार है इस दृष्टि से मुनि को गृहस्थ घर एक बार ही जाना चाहिए ।
2. काल— बाल-वृद्ध-तपस्वी - रोगी आदि साधुओं के लिए दिन की प्रथम पौरुषी का आधा भाग बीत जाये तब आहार के लिए गमन करें। अन्य कारण होने पर गृहस्थ के भोजन समय में या मध्याह्न में भिक्षा हेतु जायें ।
3. आवश्यक
मुनि शारीरिक क्रियाओं से निवृत्त होने के पश्चात ही आहार के लिए प्रस्थान करें, अन्यथा बीच मार्ग में मल या मूत्र करने पर धर्म का उपहास होता है।
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4. संघाटक – भिक्षार्थ मुनि अकेला नहीं जाये, किसी एक मुनि के साथ जायें। एकाकी जाने से किसी स्त्री का या किसी द्वेषी आदि का उपद्रव हो सकता है। बृहत्कल्पसूत्र में अकेले मुनि के द्वारा भिक्षार्थ जाने पर संभावित नौ हानियाँ बतायी गयी है । 18
5. उपकरण- उत्सर्गतः भिक्षाग्राही मुनि स्वयं के सभी उपकरणों को संलग्न रखते हुए भिक्षा की गवेषणा करे। अपवादतः जो मुनिगण अशक्त आदि हों वे पात्र, पडला, रजोहरण, डंडा, ऊनी कंबली, दो सूती चद्दर और मात्रकइतनी वस्तुएँ तो जरूर साथ में रखें।
6. मात्रक
भिक्षाटन करते समय मुनि मात्रक भी साथ में रखें। ओघनियुक्ति में भिक्षाचर्या के दौरान मात्रक रखने के निम्न प्रयोजन बताये गये हैं
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यदि आचार्य के लिए कोई अनुकूल आहार अलग से ग्रहण करना हो तो मात्रक का उपयोग करना चाहिए । इसी तरह रोगी अथवा प्राघुर्णक (अतिथि) साधुओं के निमित्त अलग से आहार लेने के लिए, घृत आदि कोई दुर्लभ वस्तु मिल जाये तो उसे लेने के लिए, अचानक किसी समय बहुत आहार मिल रहा हो तब जिसको थोड़े आहार के कारण संयम निर्वाह में कठिनाई हो रही हो तो उसके अनुग्रहार्थ अधिक आहार लेने के लिए और सेके हुए चने का आटा लेते समय गेहूँ आदि संसक्त पदार्थ आ गया हो तो जीव रक्षार्थ उसे अलग करने के लिए मात्रक रखने का विधान है। 19
वर्तमान में पात्रों की संख्या बढ़ जाने से मात्रक की उपयोगिता नहींवत रह