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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष... 33
पतंगवीथिका, शंबूकावर्त्ता, गत्याप्रत्यागता इनमें से किसी एक का संकल्प कर भिक्षा ग्रहण करते हैं।
प्रवास- जिस गाँव में कोई जानता हो वहाँ एक रात और कोई नहीं जानता हो वहाँ एक या दो रात रह सकते हैं।
भाषा– याचनी, पृच्छनी, अनुज्ञापनी और पृष्टव्याकरणी ऐसे चार प्रकार की भाषा बोल सकते हैं।
उपाश्रय - आरामगृह में, विवृतगृह (चारों ओर की दीवार से रहित किन्तु ऊपर से आच्छादित घर) में और वृक्ष के नीचे - इन तीन प्रकार के उपाश्रयों में रह सकते हैं।
संस्तारक - बिछाने के लिए पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और घास आदि- इन तीन प्रकार के संस्तारकों का प्रतिलेखन कर उनका उपयोग कर सकते हैं।
स्त्री- पुरुष - जिस उपाश्रय में आकर ठहरे हैं, वहाँ स्त्री या पुरुष उनकी ओर आने लगें तो उनके कारण निष्क्रमण नहीं कर सकते ।
अग्नि-कदाच उपाश्रय में आग लग जाये तो ईर्यापूर्वक चलते हुए बाहर आ सकते हैं किन्तु अन्य का आलम्बन नहीं ले सकते।
कंटक-यदि मार्ग में चलते हुए प्रतिमाधारी भिक्षु के पैरों में स्थाणु, कांटा आदि चुभ जाए अथवा आँख में रजकण आदि गिर जाए तो उन्हें निकालते नहीं है।
विहार-जहाँ सूर्यास्त हो जाए, वहीं ठहर जाते हैं। उसके बाद एक कदम भी आगे नहीं चलते।
नींद एवं उत्सर्ग - सचित्तभूमि के निकट निद्रा नहीं ले सकते हैं और मलमूत्र के वेग को भी नहीं रोक सकते हैं।
प्रक्षालन- प्रासुक जल से हाथ, पैर, आँखें, मुँह आदि नहीं धो सकते, किन्तु शरीर का कोई अंग भोजन आदि से खरडित हो तो उन्हें धो सकते हैं। अभय - शेर, सियार आदि दुष्ट प्राणियों को सामने आते देखकर एक पैर भी पीछे नहीं हटते।
धूप-छाया - सर्दी या गर्मी से बचने के लिए छाया से धूप में और धूप से छाया में नहीं जाते हैं।
इस प्रकार एक मासिकी प्रतिमा धारण करने वाले भिक्षु विविध प्रकार के