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24...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन पाँच समिति
समिति का सामान्य अर्थ है सम्यक प्रवृत्ति।
जैन मुनि के धार्मिक जीवन की क्रियाओं में सम्यक प्रवृत्ति करना अथवा शुभ योगों में प्रवृत्ति करना समिति है। प्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति में समिति की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है कि सम्-एकाग्रभाव से, इति-की जाने वाली प्रवृत्ति अर्थात प्राणातिपात आदि पापों से निवृत्त रहने के लिए प्रशस्त एवं एकाग्रतापूर्वक की जाने वाली आगमोक्त सम्यक प्रवृत्ति समिति कहलाती है।83 शान्त्याचार्य के अनुसार जिन प्रवचन के अनुरूप प्रवृत्ति करना समिति है।84
पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ- इन आठों को प्रवचन माता की संज्ञा दी गई हैं।85 जिस प्रकार एक माता अपनी सन्तान का हर तरह से ध्यान रखती है और उसे असत मार्ग की ओर जाने से रोकती है, उसी प्रकार समिति एवं गुप्ति साधक को हर पल सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देती है। इन आठों में जिनभाषित द्वादशांगरूप प्रवचन समाया हुआ है, इसलिए भी इन्हें प्रवचन माता कहा जाता है।86 इनके माध्यम से आत्मा के अनन्त आध्यात्मिक सद्गुण विकसित होते हैं, अत: इनका प्रवचन माता नाम सर्वथा संगत है।
पाँच समिति का स्वरूप निम्नलिखित है
1. ईर्यासमिति-ईर्या-गति, समिति-उपयोग पूर्वक प्रवृत्ति करना अर्थात संयमपूर्वक चलना ईर्या समिति है।87 संयम पूर्वक चलने का अर्थ है- आगम के अनुसार अपने आगे की साढ़े तीन हाथ परिमाण भूमि को देखते हुए चलना। स्थावर जीव-वनस्पति आदि और त्रस जीव-चींटी, मकोड़ा आदि की रक्षा करते हुए चलना ईर्यासमिति है।88
2. भाषा समिति-भाषा का सम्यक प्रयोग भाषा समिति है अर्थात विवेकपूर्वक बोलना, आवश्यकता होने पर बोलना, सत्य, हित, मित और असन्दिग्ध और सर्वजन हितकारी वाक्यों का प्रयोग करना भाषा समिति है।89
3. एषणा समिति-एषणा का अर्थ है- निर्दोष आहार, पानी की गवेषणा करना अर्थात गोचरचर्या के समय मुनि के द्वारा नवकोटि परिशुद्ध आहार का ग्रहण करना एषणा समिति है।90
एषणा तीन प्रकार से होती है-1. गवेषणा, 2. ग्रहणैषणा और 3. ग्रासैषणा। जैन मुनि को आहार, उपधि और शय्या के विषय में उक्त तीनों