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22...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन को कर्मों एवं कषायों से निर्मल करती है वहीं शरीर को रोगमुक्त बनाती है। चार कषायों का निग्रह करने से जीवन में शान्ति, सौहार्द, स्नेह आदि की प्राप्ति तथा सद्गुणों का विकास होता है।
यदि सामाजिक उत्कर्ष में चरण सत्तरी की भूमिका पर विचार किया जाए तो पंच महाव्रत का पालन करने वाला मुनि समाज में व्रत पालन हेतु निष्ठा उत्पन्न कर सकता है तथा त्याग वृत्ति की प्रेरणा दे सकता है। दसविध श्रमण धर्म के माध्यम से वह समाज में क्षमा, सरलता, लघुता, संयम, तप आदि मौलिक और नैतिक गुणों का विकास करते हुए सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान कर सकता है। सत्तरह प्रकार के संयम के माध्यम से समाज में बढ़ती परिग्रह वृत्ति, हिंसा, व्यभिचार आदि पर नियन्त्रण किया जा सकता है। दस प्रकार के वैयावृत्त्य के द्वारा समाज के असहाय, उपेक्षित वर्ग की, ज्ञानी एवं ग्लान जनों की सेवा हो सकती है। नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति के द्वारा समाज का चारित्रिक विकास होता है। रत्नत्रय के माध्यम से समाज में सही दृष्टिकोण, सद्ज्ञान एवं सचारित्र का विकास करने में विशेष सहायता प्राप्त हो सकती है। द्वादशविध तप की साधना के द्वारा समाज में आहार संयम, शरीर संयम आदि होता है। कषाय निग्रह के द्वारा समाज में वैभाविक तत्त्वों को हटाकर एक सुदृढ़ समाज की रचना की जा सकती है। ___यदि प्रबन्धन की दृष्टि से चरण सत्तरी की उपादेयता का मूल्यांकन किया जाए तो पाँच महाव्रतों का पालन जीवन एवं समाज प्रबन्धन की दृष्टि से उपयोगी है। इनके द्वारा समाज में नैतिकता, सौहार्द, परस्पर सहयोग आदि के भावों को परिपुष्ट किया जा सकता है। दस श्रमण धर्म का पालन करने से क्रोधादि कषायों का नियन्त्रण तथा सन्तोष, निस्पृहता, निरासक्तता आदि का विकास करते हुए परभावों में समय का अपव्यय कम किया जा सकता है। सत्तरह प्रकार के संयम पालन द्वारा जीवन में इन्द्रिय नियन्त्रण एवं आत्मनियन्त्रण करके वीर्य का सदुपयोग तथा उसका नियोजन संभव है। दस प्रकार के वैयावृत्य के माध्यम से समाज के असहाय एवं उपेक्षित लोगों की शक्ति का सही उपयोग कर विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है तथा वरिष्ठ एवं युवा वर्ग में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों के पालन से वासना में शक्ति एवं समय का दुरुपयोग नहीं होगा। रत्नत्रय के द्वारा आचार