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14...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
1. क्षमा 2. मार्दव 3. आर्जव 4. मुक्ति 5. तप 6. संयम 7. सत्य 8. शौच 9. आकिंचन्य और 10. ब्रह्मचर्य।
यहाँ इतना विशेष है कि आवश्यकचूर्णि एवं तत्त्वार्थसूत्र में दस श्रमण धर्म का उल्लेख करते हुए क्षमा आदि के पूर्व 'उत्तम' विशेषण लगाया है जैसे उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव आदि। इस विशेषण का तात्पर्य है कि क्षमा आदि धर्म तभी हो सकते हैं जब वे उत्तम हों और शुद्ध भाव से किये गये हों। जो व्याख्याएँ दी गई हैं, वे भी एक दूसरे से कहीं-कहीं भिन्न हैं।
आचार्य कुन्दुकुन्द रचित द्वादशानुप्रेक्षा53 एवं स्वामीकार्तिकेय रचित कार्तिकेयानप्रेक्षा में दस धर्मों के नाम एवं उनका क्रम निम्नोक्त है- 1. क्षमा 2. मार्दव 3. आर्जव 4. सत्य 5. शौच 6. संयम 7. तप 8. त्याग 9. आकिंचन्य और 10. ब्रह्मचर्य। ___ इस तरह उपर्युक्त ग्रन्थों में दस यतिधर्म के नामों एवं क्रम को लेकर समानता और भिन्नता दोनों है। इनमें दस धर्मों की जो व्याख्याएँ दी गई हैं, वे भी एक-दूसरे से कहीं-कहीं भिन्न हैं। __प्रस्तुत सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि आवश्यक चूर्णि में दसविध श्रमण धर्म का मूलगण और उत्तरगण दोनों में समावेश किया गया है। प्रथम प्राणातिपात विरति में संयम का, द्वितीय सत्य महाव्रत में सत्य का, चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रत में ब्रह्मचर्य का, तृतीय अदत्तादान महाव्रत एवं पंचम परिग्रह महाव्रत में अकिंचनत्व का और शेष धर्मों को उत्तरगुणों में अन्तर्भूत किया है।54 सत्तरह संयम
पाप कार्यों से विरत रहना संयम है। मुनि के लिए सत्तरह प्रकार के संयम का पालन करना आवश्यक बतलाया है। वे सत्तरह संयम निम्न हैं 55
1-9. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करना, न करवाना, न हिंसा का अनुमोदन करना। ___10. अजीव संयम- जिन निर्जीव वस्तुओं के द्वारा असंयम होता हो, ऐसे बहुमूल्य वस्त्र-पात्रादि ग्रहण नहीं करना अजीव संयम है। ____ 11. प्रेक्षा संयम- सम्यक् प्रकार से देखभाल करके उठना-बैठना, सोना आदि।