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विषयानुक्रमणिका
अध्याय-1 : श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष 1-68
___ 1. श्रमण शब्द का अर्थ विमर्श 2. श्रमण के एकार्थवाची नाम 3. श्रमण के प्रकार 4. श्रमण जीवन की महत्ता 5. श्रमण कैसा हो ? 6. मुनि के लिए आवश्यक गुण 7. श्रमण के लिए आचरणीय 70 मूल गुण 8. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में चरण सत्तरी की प्रासंगिकता 9. श्रमण के लिए पालनीय 70 उत्तरगुण 10. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करण सत्तरी की उपादेयता 11. जैन श्रमण की अहोरात्र चर्या विधि 12. उग्घाड़ा पौरुषी विधि 13. मुनियों की ऋतुबद्धचर्या विधि 14. श्रमण चर्या के आवश्यक अंग 15. श्रमण जीवन की आवश्यक शिक्षाएँ 16. साधु और श्रावक में मुख्य भेद के शास्त्रीय कारण। अध्याय-2 : जैन मुनि के सामान्य नियम 69-102
1. दस कल्प 2. दस सामाचारी 3. इक्कीस शबल दोष 4. बीस असमाधि स्थान 5. बाईस परीषह 6. बावन अनाचीर्ण 7. अठारह आचार स्थान 8. तुलना एवं उपसंहार। अध्याय-3 : अवग्रह सम्बन्धी विधि-नियम 103-111
___ 1. अवग्रह का अर्थ विचार 2. अवग्रह के प्रकार 3. अवग्रह ग्रहण करने का क्रम 4. कौनसा अवग्रह किस योगपूर्वक 5. अवग्रह की क्षेत्र सीमा 6. अवग्रह सम्बन्धी कुछ निर्देश 7. अवग्रह की आवश्यकता क्यों? 8. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अवग्रह विधि की उपादेयता 9. उपसंहार। अध्याय-4 : मुनियों के पारस्परिक आदान-प्रदान सम्बन्धी विधि-नियम
112-123 1. संभोग का अर्थ 2. संभोग के प्रकार 3. उपसंहार। अध्याय-5 : उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन
124-157 1. उपधि एवं उपकरण शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ 2. उपधि के प्रकार 3. औधिक उपधि की संख्या 4. औधिक उपधि के प्रकार 5. औधिक उपधि