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xivili...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन में मिलने पर तादात्म्य रूप हो जाता है। लोहा पारस का स्पर्श पाकर सोना बनता है, बेल पेड़ से लिपटकर ऊँची चढ़ती जाती है वैसे ही अन्तर्चेतना पूर्वक की गई उपासना से आत्मा परमात्म दशा को प्राप्त कर लेती है। जिस अनुपात में साधना की जाये, उतना प्रभाव हाथों-हाथ वृद्धिंगत होता है।
उपासनात्मक पद्धति द्वारा परमात्मा के साथ सीधा सम्बन्ध बनता है। यह अनुभूति सिद्ध तथ्य है कि जब भी कोई उपासना निर्धान्त और श्रद्धापूर्ण हो तो वह परम लक्ष्य को उपलब्ध करवाकर ही रुकती है।
साधना का ध्येय अपने आप को साधना है। चिन्तन और चरित्र में अत्यन्त घनिष्ठता अथवा एकरूपता होना ही साधना है। साधना स्तर तक पहुँचने के लिए मन: संस्थान को आत्मानुशासित कर पूर्वजन्म के कुसंस्कारों से जूझना पड़ता है। दुर्विचारों के सम्मुख सद्विचारों की सेना खड़ी करके उन्हें परास्त करना पड़ता है। इसीलिए प्रतिलेखनादि क्रियाओं को मनोनिग्रह पूर्वक निष्पादित करना साधना है। ___ आराधना का अर्थ सत्प्रवृत्ति सम्वर्द्धन में निरत होना एवं विश्व कल्याण की कामना करना है। आराधना हेतु मन, वचन एवं काया की शुद्धि आवश्यक है। आराधना का मार्ग उपासना समन्वित एवं साधना से अलंकृत है। उपासना भूमिशोधन है, साधना बीजारोपण है और आराधना फसल उगने के तुल्य है।
__ गृहस्थ सम्बन्धी आचार हो या श्रमण सम्बन्धी, उसकी विशुद्धि के लिए इन तीन सोपानों का आश्रय लेना अत्यन्त आवश्यक है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में श्रमणाचार से सम्बन्धित कई विधि-विधानों का तुलनात्मक, समीक्षात्मक एवं ऐतिहासिक पक्ष प्रस्तुत किया गया है। साथ ही इनके प्रयोजनों आदि अनेक उपयोगी तथ्यों को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है।
यह शोध खण्ड पन्द्रह अध्यायों में इस प्रकार गुम्फित है
प्रथम अध्याय में श्रमण शब्द का अर्थ विश्लेषण करते हुए श्रमण के प्रकार, श्रमण जीवन का महत्त्व, श्रमण के सामान्य-विशिष्ट गुण, श्रमण की दैनिक एवं ऋतुबद्धचर्या, श्रमण जीवन की सफलता हेतु आवश्यक शिक्षाएँ जैसे पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।