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स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम...357 स्थंडिल भूमि है। इसमें यह भी कहा गया है कि जहाँ चक्रवर्ती की सेना छावनी डालकर रहती है वह उत्कृष्ट स्थंडिल भूमि होती है। एक हाथ से लेकर बारह योजन तक के बीच की भूमि मध्यम स्थंडिल भूमि है। उपर्युक्त भूमियों के अतिरिक्त भूमि में मलोत्सर्ग करने से जीव हिंसा, संयम विराधना आदि दोष लगते हैं। अदूरावगाढ़ भूमि के दोष
जो भूमि चार अंगुल से अधिक नीचे तक अचित्त (निर्जीव) बन गई हो, वह उत्कृष्ट दूरावगाढ़ स्थंडिल भूमि है। पंचवस्तुक टीका के अनुसार चार अंगुल तक अचित्त बनी हुई भूमि पर मलोत्सर्ग किया जा सकता है और इससे अधिक गहराई तक अचित्त बनी हुई भूमि पर मूत्र त्याग किया जा सकता है। चार अंगुल से न्यून अचित्त भूमि पर मलोत्सर्ग करने से जीव वध, संयम विराधना आदि दोष लगते हैं।19 आसन्न भूमि के दोष ___आसन्न (निकटस्थ) भूमि दो प्रकार की कही गई है-1. द्रव्यासन्न और 2. भावासन्न।
1. द्रव्यासन्न-गृह, मार्ग, मन्दिर, उद्यान आदि के निकट मलोत्सर्ग करना द्रव्य आसन्न है। द्रव्यासन्न भूमि पर मलोत्सर्ग करने से उद्यान आदि के मालिक साधु पर क्रुद्ध होकर उनकी ताड़ना-तर्जना कर सकता है और इससे आत्मविराधना की संभावना रहती है तथा गृहादि का मालिक कर्मचारी के द्वारा वहाँ से मल हटवाये और उस स्थान को पानी से स्वच्छ करवाये तो जीव हिंसा होने से संयम विराधना होती है। . 2. भावासन-मलोत्सर्ग (बड़ीनीति) की तीव्र शंका हो तब तक उपाश्रय में बैठे रहना और शंका निवारण के लिए बाहर नहीं जाना भावासन्न है। भावासन्न रूप से मलोत्सर्ग करने पर आत्म विराधना, प्रवचन विराधना और संयम विराधना होती है। मल की तीव्र शंका होने के पश्चात स्थंडिल भूमि तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है ऐसी स्थिति में मकान आदि के निकट मल विसर्जन करें तो शासन की हीलना होने से प्रवचन (जिनवाणी) की विराधना होती है। मलोत्सर्ग (बड़ीनीति) को रोकने पर रोगादि उत्पत्ति की संभावना भी निश्चित रूप से रहती है इससे आत्म विराधना भी होती है। अत: अनासन्न (वसति से