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________________ स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि- नियम... 343 3. सम- जो कंकड़, पत्थर, गड्ढे, कांटे आदि विषमताओं से रहित हो, वह सम भूमि है। 4. ठोस- बिल आदि से रहित स्थान ठोस कहलाता है। स्थंडिल भूमि पोली, कोमल या छिद्रयुक्त न होकर कठोर होनी चाहिए । 5. अचिरकालकृत - जो भूमि किसी ऋतु विशेष के लिए अचित्त बनायी गयी हो, वह अल्पकालिक भूमि अचिरकालकृत कहलाती है। 6. विस्तीर्ण - जो स्थान लम्बा, चौड़ा अर्थात विस्तारवाला हो वह विस्तीर्ण स्थंडिल कहा जाता है। 7. दूरावगाढ़ - जो स्थान अन्दर में गहराई तक अचित्त हो, वह दूरावगाढ़ स्थंडिल भूमि है। हो वह 8. अनासन्न— जो स्थान मन्दिर, बगीचा, मकान आदि से दूर अनासन्न स्थंडिल भूमि है। वह 9. बिलवर्जित - जहाँ चूहे, सांप, चीटियाँ आदि के बिल न हो, बिलवर्जित स्थंडिल भूमि कही जाती है । 10. त्रस - प्राण बीज रहित - जो भूमि स्थावर ( पृथ्वीकायादि) और जंगम (त्रस) जीव जन्तुओं से रहित हो, वह त्रस - प्राण बीज रहित स्थंडिल कहलाता है। संक्षेपतः जो स्थान उक्त दस प्रकार के गुणों से समन्वित हो तथा विषम, संकीर्ण, आसन्न, औपघातिक आदि दोषों से रहित हो वही मल-मूत्र आदि के विसर्जन हेतु उचित कहा गया है। स्थंडिल भूमि के 1024 विकल्प कैसे? जैनागमों में स्थंडिल भूमि दस प्रकार की बताई गई है किन्तु पंचवस्तुक के 'अनुसार इन दशविध भूमि के एक संयोगी, द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी यावत् दस संयोगी भांगे करने से कुल 1024 भांगे (विकल्प) बनते हैं। 3 स्थंडिल के 1024 विकल्प बनाने की विधि इस प्रकार है सर्वप्रथम जितने संयोगी भांगे करने हों, उतनी संख्या क्रमशः लिख लें। फिर उसके नीच पश्चानुपूर्वी से वही संख्या लिखें। फिर निम्न पंक्ति की पहली संख्या से उसके ऊपर की संख्या को गुणा करें जो गुणनफल आये, उसे नीचे लिखें। फिर नीचे की दूसरी संख्या से उस गुणनफल में भाग दें। जो भागफल
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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