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________________ वर्षावास सम्बन्धी विधि-नियम...301 वाला साधु निम्नलिखित तीन प्रकार का पानी ले सकता है- 1. आयामकअवस्रावण-ओसामन, 2. सौवीरक-कांजी, 3. शुद्धविकट उष्णोदक। अट्ठम (तेला) से अधिक तप करने वाला साधु केवल गर्म जल ले सकता है।26 इस प्रकार वर्षाकल्पिक मुनियों के लिए इन दिनों विशिष्ट नियमों के परिपालन का विधान है। दिशा ग्रहण सम्बन्धी-वर्षावास करने वाले साधु-साध्वियों को चारों दिशाओं एवं विदिशाओं में एक कोश सहित एक योजन क्षेत्र का अवग्रह (स्थान) ग्रहण करके रहना कल्पता है। इस क्षेत्र मर्यादा से बाहर 'यथालन्दकाल' ठहरना भी कल्प्य नहीं है।27 वर्षावास स्थित साधु-साध्वियों को किसी एक दिशा या विदिशा का निश्चय करके आहार-पानी की गवेषणा करनी चाहिए, क्योंकि वर्षाकाल में श्रमण प्राय: तपश्चर्या आदि में संलग्न रहने से दैहिक दुर्बलतावश कहीं मूछित हो जाएं या गिर जाएं तो सहवर्ती मुनि उस दिशा में उनकी शोध कर सकें।28 वर्षावास स्थित हृष्ट-पुष्ट एवं निरोग साधु-साध्वियों को कोई भी विगय ग्रहण करना नहीं कल्पता है। यदि आवश्यक हो तो आचार्यादि की अनुमति लेकर ग्रहण कर सकते हैं।29 वर्षावास स्थित साधु-साध्वियों का शरीर वर्षा जल से गीला हो गया हो तो जब तक न सूखे आहारादि ग्रहण करना नहीं कल्पता है।30 दत्ति ग्रहण सम्बन्धी- वर्षावास में रहने वाले एवं दत्तिओं की संख्या का नियम धारण करने वाले भिक्षु को आहार की पाँच दत्तियाँ और पानी की पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है अथवा आहार की चार और पानी की पाँच अथवा आहार की पाँच और पानी की चार दत्ति ग्रहण करना कल्पता है। यदि एक दत्ति नमक की डली जितनी भी हो तो भी उस दिन उस आहार से निर्वाह करना चाहिए।31 शय्या ग्रहण सम्बन्धी- वर्षावास स्थित साधु-साध्वियों को आगम विधि के अनुसार शय्या और आसन अवश्य ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा वर्षावास की आराधना अच्छी तरह नहीं हो सकती।32 मात्रक ग्रहण सम्बन्धी- वर्षावास स्थित साधु-साध्वियों को तीन मात्रक ग्रहण करना चाहिए-1. मल विसर्जन हेतु 2. मूत्र विसर्जन हेतु 3. कफ विसर्जन हेतु।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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