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________________ 292... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन क्या आप वर्षावास इधर करेंगे तो मुनि निश्चयपूर्वक कुछ न कहें। यदि अभिवर्धित संवत्सर हो तो बीस दिन-रात तक और चान्द्र संवत्सर हो तो एक मास बीस दिन-रात तक यह अनिश्चितता रखी जाए। इस अवधि के पश्चात शेष काल का निर्धारण कर लें और गृहस्थों के समक्ष इतना कह भी दें कि हम यहाँ वर्षावास के लिए स्थित हैं। यहाँ प्रतिप्रश्न होता है कि वर्षावास का निर्णय करने में इतना लंबा कालक्षेप क्यों रखा गया ? जैनाचार्यों ने इसके समाधान में कहा है कि महामारी, राजद्वेष आदि कारणों से अथवा अच्छी वर्षा के अभाव में धान्योत्पत्ति न होने पर मुनियों को अन्यत्र जाना पड़ सकता है। यदि वर्षावास स्थापना का पहले से ही ज्ञात हो जाये तब लोगों में अपवाद होता है, इन सबसे बचने के लिए कालक्षेप आवश्यक है। यदि गवेषणा करते हुए आषाढ़ पूर्णिमा तक सुयोग्य क्षेत्र न मिले तथा श्रावण कृष्णा पंचमी तक वर्षावास की स्थापना न हो सके तो पाँच-पाँच दिन रात बढ़ाते-बढ़ाते एक मास और बीस दिन-रात के पश्चात वर्षावास योग्य क्षेत्र न होने पर भी भाद्र शुक्ला पंचमी को वृक्ष के नीचे ही पर्युषण कर लेना चाहिए। आगमवेत्ता पूर्वाचार्यों ने यह मत भी प्रस्तुत किया है कि यदि विचरण करते हुए आषाढ़ शुक्ला दशमी के दिन वर्षावास योग्य क्षेत्र की प्राप्ति हो जाए तो आषाढ़ी पूर्णिमा को पर्युषण करना चाहिए। पर्युषण पूर्णिमा, पंचमी, दशमी और अमावस्या-इन पर्व तिथियों में करना चाहिए, अपर्वतिथि में नहीं। " उक्त कथन पर बल देते हुए दशाश्रुतस्कन्धसूत्र में कहा गया है कि श्रमण भगवान महावीर वर्षाऋतु के पचास दिन बीत जाने पर वर्षावास के लिए पर्युषित (स्थित) हुए। 7 कहने का भावार्थ यह है कि आगम परिपाटी के अनुसार आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वर्षा क्षेत्र मिल जाए तो आषाढ़ पूर्णिमा को ही वर्षावास की स्थापना कर लेनी चाहिए। यदि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वर्षावास के योग्य क्षेत्र की प्राप्ति हो जाए तो श्रावण कृष्णा पंचमी को चातुर्मास स्थापन करना चाहिए। इस प्रकार पाँच-पाँच दिन-रात की वृद्धि करते हुए एक मास और बीस दिन-रात अर्थात भाद्र शुक्ला पंचमी तक प्रवर्द्धित किसी भी दिन में पर्युषण (वर्षावास स्थापन) कर लेना चाहिए, किन्तु श्रावण पूर्णिमा से लेकर पच्चासवें दिन का
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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