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वर्षावास सम्बन्धी विधि - नियम... 291
7. स्थापना - इस समय वर्षावास सामाचारी की स्थापना की जाती है। 8. ज्येष्ठावग्रह-ऋतुबद्धकाल ( शेष आठ महीनों) में एक-एक मास का क्षेत्रावग्रह किया जाता है, जबकि वर्षावास में चार मास का एक क्षेत्रावग्रह हाता है, अतएव ज्येष्ठावग्रह नाम है।
वर्षावास (पर्युषणा) की स्थापना कब और कैसे?
वर्षावास-आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का पावन पर्व है। मुनि और गृहस्थ, दोनों के लिए इस काल का धार्मिक विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है। प्रश्न होता है कि वर्षावास की स्थापना कब की जानी चाहिए ? तथा इस सम्बन्ध में शास्त्रीय अवधारणा क्या है ?
श्वेताम्बर परम्परा का सुप्रसिद्ध आगम श्री कल्पसूत्र में कहा गया है कि मासकल्प से विचरते हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन चातुर्मास के लिए एक स्थान पर रहना चाहिए, क्योकिं वर्षाकाल में नासकल्पी विहार करने से साधु और साध्वियों द्वारा एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों की विराधना होती है | 4
कल्पसूत्रनिर्युक्ति में उल्लेख है कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तक नियत स्थान पर पहुँचकर श्रावण कृष्णा पंचमी से वर्षावास प्रारम्भ कर देना चाहिए। यदि उपयुक्त क्षेत्र न मिले तो श्रावण कृष्णा दशमी से पाँच-पाँच दिन बढ़ाते हुए भाद्रशुक्ला पंचमी के दिन तक तो निश्चित ही वर्षावास प्रारम्भ कर देना चाहिए, फिर चाहे वृक्ष के नीचे ही क्यों न रहना पड़े, किन्तु इस तिथि का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
बृहत्कल्पभाष्य, निशीथचूर्णि आदि में उक्त मत का समर्थन करते हुए कुछ विस्तार के साथ इस प्रकार निरूपण किया गया है कि मुनि वर्षावास योग्य क्षेत्र में आषाढ़ी पूर्णिमा को प्रवेश कर लें, कार्तिक पूर्णिमा तक उस क्षेत्र में स्थिरवास करें, उसके बाद वहाँ से निर्गमन कर लें। यदि वर्षा आदि प्राकृतिक उपद्रवों के कारण वर्षावास समाप्ति के तुरन्त बाद विहार न कर सकें तो मिगसर कृष्णा दशमी तक भी वहाँ रहा जा सकता है।
श्रावण कृष्णा पंचमी को वर्षावास सामाचारी की स्थापना करें अर्थात वर्षावास के चार महीनों में पालन करने योग्य मर्यादाओं को धारण करें, परन्तु वह स्थान अनवधारित (अनिश्चित) ही रखा जाये। यदि कोई गृहस्थ पूछ लें कि