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पात्र ग्रहण सम्बन्धी विधि-नियम...233
उतने परिमाण में लाएं। फिर उपयोग विधि करें। इसमें एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग कर प्रकट में एक नमस्कारमन्त्र बोलें। फिर पात्र आदि की खोज करने में स्वयं निपुण हों तो रंग लेने के लिए दो सकोरे और लेप के लिए रूई गृहस्थ के घर से प्राप्त करें। यदि सामग्री प्राप्त करने में स्वयं अनुभवी न हों तो अन्य गीतार्थ साधु लाकर दें। फिर सकोरे में राख भर कर उसे एक वस्त्र खण्ड से ढंक दें ताकि त्रस जीव चढ़ न सकें और मृत्यु को भी प्राप्त न हो सकें। इस तरह लेप की सब सामग्री एकत्रित करें।
उसके पश्चात जिस बैलगाड़ी से लेप (पहिये का मैल) प्राप्त करना हो उसके मालिक की आज्ञा प्राप्त करें। शय्यातर की गाड़ी का भी लेप ले सकते हैं। कड़वा-मीठा लेप जानने के लिए नाक से सूंघकर उसका निर्णय करें। कड़वा तेल हो तो ग्रहण न करें, क्योंकि कड़वे तेल का लेप पात्र के ऊपर नहीं टिकता है। मीठा तेल हो तो ग्रहण करें। इसी तरह गाड़ी में भी हरी वनस्पति या सचित्त बीज आदि न हों, उड़ने वाले जीव न हों, महावायु न हो अथवा आकाश में से कुहरा न गिरता हो तभी लेप ग्रहण करें, नहीं तो संघट्टा एवं जीव विराधना आदि का दोष लगता है।
इस तरह उचित स्थान से विधिपूर्वक लेप ग्रहण कर उसको वस्त्र खण्ड से आच्छादित करें। फिर उसके ऊपर रूई रखें, रूई के ऊपर भस्म डालकर वस्त्र से उस संपुट को बाँध दें। तदनन्तर गुरु के समीप पहुँचकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर लेप किस विधिक्रम से लाया गया, गुरु के समक्ष उसका निवेदन करें। ___ पात्र लेप की विधि इस प्रकार है-18
पात्र लेप विधि- सर्वप्रथम लेप करने के लिए पोटली बनायें। पोटली बनाने के लिए पात्र को उल्टा करें, फिर उसके ऊपर एक वस्त्र खण्ड बिछायें, उस पर रूई का स्तर बिछाकर उसमें लेप डालें, फिर उसे पोटली की तरह अंगष्ठ, मध्यमा और तर्जनी इन तीन अंगुलियों से पकड़ें। इस तरह पकड़ी हुई पोटली के वस्त्र खण्ड से निकलते हए रस के द्वारा पात्र का लेप करें। लेप करते समय एक, दो या तीन पात्रों की लिपाई करें, फिर अंगुलियों से घिसते हुए पात्र को मुलायम करें। उसमें भी एक पात्र को गोद में रखकर दूसरे को अंगुली से घिसें। इस तरह अनुक्रम से एक-एक पात्र को अंगुली से घिसते जायें और घिसे हुए पात्रों को गोद में रखते जायें। यदि एक पात्र का उत्कृष्ट लेप किया गया हो